________________ अनेकान्त का तात्त्विक एवं तार्किक आधार / 147 विवक्षा हेतु . प्रधानता एवं गौणता से एक ही वस्तु में विरोधी धर्मों की सहावस्थिति युक्तिसंगत हैं / वस्तु अनन्तधर्मात्मक है। उसके प्रत्येक धर्म का अर्थ भिन्न है ।वस्तु के धर्मों में स्वत:प्रधानता एवं गौणता नहीं होती किन्तु वक्ता की विवक्षा से वे धर्म प्रधान या गौण बन जाते हैं / वस्तु का प्रत्येक धर्म अन्य धर्मों को गौण करके सम्पूर्ण सत्ता को . प्रतिपादित कर सकता है। जिस धर्म की विवक्षा होती है वह प्रधान एवं शेष धर्म उसके अंग बन जाते हैं। स्वचतुष्ट्य परचतुष्ट्य . . अस्तित्व विधि है और नास्तित्व प्रतिषेध है / अस्तित्व का हेतु वस्तु का स्वद्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव है एवं नास्तित्व का हेतु परद्रव्य क्षेत्र आदि है। घटपदार्थ स्व द्रव्य क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा अस्तिरूप एवं परद्रव्यक्षेत्र आदि की अपेक्षा नास्ति रूप है / यदि ऐसा स्वीकार न किया जाये तो वस्तु की व्यवस्था ही नहीं हो सकती। वस्तु स्वरूपशून्य नहीं है इसलिए विधि की प्रधानता से उसका प्रतिपादन किया जाता है और वह सर्वात्मक नहीं है इसलिए निषेध की प्रधानता से उसका प्रतिपादन किया जाता है / स्वद्रव्य की अपेक्षा घट का अस्तित्व है / यह विधि है / पर द्रव्य की अपेक्षा घट का नास्तित्व है / यह निषेध है। इसका अर्थ ऐसा अभिव्यञ्जित होता है कि निषेध दूसरे के निमित्त से होनेवाला पर्याय है किन्तु वस्तुतः ऐसा नहीं है / निषेध की शक्ति द्रव्य में निहित है। द्रव्य यदि अस्तित्व धर्मा हो और नास्तित्व धर्मा न हो तो वह अपने द्रव्यत्व को बनाए नहीं रख सकता। निषेध पर की अपेक्षा से व्यवहृत होता है. इसलिए उसे आपेक्षिक या पर-निमित्तक पर्याय कहते हैं / घट सापेक्ष है अतः उसका अस्तित्व एवं नास्तित्व युगपत् हैं"। विरोध का समाहार ___ अस्तित्वं-नास्तित्व विरोधी होते हुए भी एक ही वस्तु में अविनाभाव से युगपत् रहते हैं / एकान्त अस्तिवादी एवं एकान्त नास्तिवादी दर्शनों का मन्तव्य है कि ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते / यद्यपि अनुभवगोचर वस्तु का स्वरूप उन्हें भी उभयात्मक ही प्रतीत होता है किन्तु वे वस्तु की व्यवस्था a priori logic (अनुभव निरपेक्ष तर्क) से करते हैं। अनुभव निरपेक्ष तर्क का मन्तव्य है कि जहां अस्तित्व है वहां नास्तित्व एवं जहां नास्तित्व रहता है वहां अस्तित्व नहीं रह सकता / पदार्थ में अनुभव के द्वारा . दोनों की एक साथ प्रतीति होने पर भी वे एक को मिथ्या कहकर अस्वीकार कर देते / हैं / वेदान्त अस्तित्व को एवं बौद्ध नास्तित्व को यथार्थ स्वीकार करते हैं।