________________ 140 / आर्हती-दृष्टि महत् आदि 23 तत्त्वों की उत्पत्ति होती है। पुरुष सहित यह दर्शन 25 तत्त्वों को स्वीकार करता है। सांख्य का पुरुष, अमूर्त, चेतन एवं निष्क्रिय है / विश्व के निर्माण, संचालन में इसकी कोई सम्भागिता नहीं है। ___न्याय-वैशेषिक न्यायदर्शन प्रमाण, प्रमेय आदि सोलह तत्त्वों को स्वीकार करता है तथा इन तत्त्वों के ज्ञान से ही मुक्ति होती है" / वैशेषिक द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष एवं समवाय-ये छह: पदार्थ मानता है / बाह्य जगत् की वास्तविक सत्ता है। बाह्य जगत् के उपादान कारण परमाणु है / ईश्वर जगत् का निर्माता है / जगत् संरचना का निमित्त कारण है। पूर्वमीमांसा-कुमारिल भट्ट एवं प्रभाकर की ये दो पूर्वमीमांसीय परम्पराएँ हैं। दोनों ही वस्तुवादी हैं। प्रभाकर द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, परतन्त्रता, शक्ति, सादृश्य और संख्या नाम वाले 8 पदार्थ स्वीकार करते हैं। भाट्ट परम्परा में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य और अभाव ये पाँच पदार्थ स्वीकृत हैं। : जैन जैन दर्शन के अनुसार जीव और अजीव ये दो मूल तत्त्व हैं। इनके विस्तार से तत्त्वों की संख्या नौ हो जाती है / उपर्युक्त वर्णित सारे दर्शन वस्तुवादी हैं / ये बाह्य पदार्थ की वास्तविक सत्ता स्वीकार करते हैं। प्रत्ययवादी अन्रंग जगत् को स्वीकार कर बाह्य का निषेध कर देता है। जैन दर्शन की प्रकृति अनेकान्तवादी है। अनेकान्त अपनी प्रकृति के अनुसार बाह्य एवं अन्तर जगत् को स्वीकृति प्रदान करता है। 'जैन दर्शन प्रकृति से अनेकान्तवादी होते हुए भी एकान्ततः वस्तुवादी है। ऐसा पण्डित सुखलाल जी का मन्तव्य है। किन्तु जैन दर्शन की अनेकान्तवादी प्रकृति होने के कारण प्रत्ययवादी एवं वस्तुवादी इन दोनों धाराओं में समन्वय करने में उसे कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। आगमकाल से लेकर अद्यप्रभृति जैन विचारकों के विचारों से भी हमारे इस मंतव्य की पुष्टि हो रही है। . आचारांग जो ऐतिहासिक एवं कालक्रम से भी सबसे प्राचीन आगम है, उस आगम के अनेक स्थलों पर प्रत्ययवाद की अनुगूंज स्पष्ट सुनाई पड़ रही है। परमात्म स्वरूप के विश्लेषण में आचारांग घोषणा कर रहा है कि परमात्मा शब्द का विषय नहीं बन सकता। सारे स्वर वहाँ से लौट आते हैं। परमात्मा न तर्कगम्य है न ही बुद्धि ग्राह्य है / उसका बोध करने के लिए कोई उपमा नहीं है / पुरुष ! जिसको तू मारना चाहता है, वह तू ही है / तुम्हारे से भिन्न दूसरा कोई नहीं है। ‘एगे आया“ ठाणं सूत्र का यह वक्तव्य भी हमारा ध्यान ब्रह्माद्वैतवाद की तरफ