________________ 138 / आर्हती-दृष्टि भारतीय दर्शन वस्तुबाद प्रत्ययवाद जैन | पूर्वमीमांसक चार्वाक सांख्य योग ब्रह्मद्वैत बौद्ध शब्दाद्वैत (शांकर वेदान्त) ... विज्ञानाद्वैत शून्याद्वैत वेदान्त बौद्ध मध्व निम्बार्क रामानुज सौत्रान्तिक वैभाषिक प्रत्ययवादी (1) ब्रह्माद्वैत-ब्रह्माद्वैतवाद के अनुसार सम्पूर्ण विश्व ब्रह्ममय है' / यहां नानात्व नहीं है / ब्रह्म की ही वास्तविक सत्ता है / जगत् की सत्ता घ्यावहारिक है / 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या' / स्वप्न मृगमरीचिका ये प्रातिभासिक सत् है। पारमार्थिक, व्यावहारिक एवं प्रातिभासिक के भेद से सत् वेदान्त में त्रिधा विभक्त हो जाता है / नित्यता ही सत्य है / परिवर्तन काल्पनिक/मिथ्या है। (2) विज्ञानाद्वैतवाद(बौद्ध) -विज्ञानाद्वैत के अनुसार दृश्य जगत् की वास्तविक सत्ता नहीं है। सम्पूर्ण विश्व विज्ञानमय है। विज्ञान ही बाह्य पदार्थ के आकार में अवभासित हो रहा हैं / वास्तव में विज्ञान एक रूप ही है। बुद्धि का न तो कोई ग्राह्य है और न कोई ग्राहक है / ग्राह्य-ग्राहक भाव से रहित बुद्धि स्वयं ही प्रकाशित होती (3) शून्याद्वैतवाद–इसका अपर नाम माध्यमिक भी है / इस दर्शन की अवधारणा के अनुसार शून्य ही परमार्थ सत् है / यहाँ शून्य का अर्थ अभाव नहीं है। किन्तु शून्य का अर्थ है तत्त्व की अवाच्यता / शून्य (तत्त्व), सत्, असत्, उभय एवं अनुभय रूप नहीं है। वह चतुष्कोटि विनिर्मुक्त हैं।