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________________ अनेकान्त का तात्त्विक एवं तार्किक आधार यह जगत् जैसा दृष्टिगोचर हो रहा है वैसा ही है अथवा तद्भिन्न है ? इस प्रश्न के समाधान में विभिन्न दार्शनिक धाराओं का उद्भव हुआ। उन धाराओं को हम मुख्यतः दो भागों में विभाजित कर सकते हैं—प्रत्ययवाद एवं वस्तुवाद (Idealism and Realism) / ये दोनों शब्द आधुनिक दर्शनशास्त्र में प्रयुक्त होते हैं। प्राचीन भारतीय दर्शन साहित्य में ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है। यदि इन शब्दों के प्राचीन दर्शन साहित्य में सदृश अर्थव्यञ्जक शब्द ढूंढना चाहें तो वस्तुवाद के लिए बाह्यार्थवाद एवं प्रत्ययवाद के लिए ब्रह्माद्वैत, विज्ञानाद्वैत, शून्याद्वैत एवं शब्दाद्वैत का समन्वित प्रयोग कर सकते हैं / सम्पूर्ण अद्वैतवादी अवधारणा का प्रतिनिधित्व करनेवाला प्रत्ययवाद शब्द है, ऐसा कहा जा सकता है। वस्तुवाद (Realism) . वस्तुवाद के अनुसार, सत् को बाहा, आभ्यन्तर, पारमार्थिक, व्यावहारिक, परिकल्पित, परिनिष्पन्न आदि भेदों में विभक्त नहीं किया जा सकता। सत्य, सत्य ही है, उसमें विभाग नहीं होता। प्रमाण में अवभासित होनेवाले सारे तत्त्व वास्तविक हैं तथा उन तथ्यों को वाणी के द्वारा प्रकट भी किया जा सकता है / इन्द्रिय, मन एवं अतीन्द्रियज्ञान, इन सब साधनों से ज्ञात होनेवाला प्रमेय वास्तविक है / इन साधनों से प्राप्त ज्ञान में स्पष्टता-अस्पष्टता न्यूनाधिकता हो सकती है किन्तु इनमें से किसी एक प्रकार के ज्ञान द्वारा दूसरे प्रकार के ज्ञान का अपलाप नहीं किया जा सकता। प्रत्ययवाद (Idealism) प्रत्ययवादी अवधारणा के अनुसार जो दृश्य जगत् है, वह वास्तविक नहीं हैं। पारमार्थिक सत्य इन्द्रियग्राह्य नहीं है तथा उसको वाणी के द्वारा अभिव्यक्त भी नहीं किया जा सकता' / अतीन्द्रिय चेतना के द्वारा गृहीत सूक्ष्म तत्त्व ही वास्तविक है। स्थूल जगत् की पारमार्थिक सत्ता नहीं है। भारतीय दर्शनों का विभाजन सम्पूर्ण भारतीय दर्शनों को प्रत्ययवाद एवं वस्तुवाद इन दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। जो निम्नलिखित चार्ट से स्पष्ट है
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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