________________ ॐ 136 / आर्हती-दृष्टि 3. सदसन्नित्यानित्यादिसर्वथैकान्तप्रतिक्षेपलक्षणोऽनेकान्तः। अष्ट श. अष्ट सहस्री, पृ. 286 / 4. स्यान्नाशि नित्यं सदृशं विरूप.... 'अन्ययोगव्यवच्छेदिका', श्लो. 25 / जैन दर्शन और अनेकान्त, पृ. 8 / 6. अनेकान्तेऽप्यनेकान्तः प्रमाणनयसाधनः। अनेकान्तः प्रमाणस्ते तदेकान्तोऽर्पितान्नयात् // स्वयंभू स्तोत्र 103 / 7. उप्पजंति वियंति य भावा नियमेण पज्जवनयस्स। . दव्वट्ठियस्स सव्वं अणुप्पन्नमविणटुं॥ सन्मति-प्रकरण, 1/4 / 8. निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत ।आप्तमीमांसा, श्लो. 108 / 9. . यत् सत् तत् द्रव्यं पर्यायश्च / न्याय कर्णिका 5/8 / 10. अपर्ययं वस्तु समस्यमानमद्रव्यमेतच्चविविच्यमानम्। . अन्ययोगव्यवच्छेदिका, श्लो. 23 / 11. तत्त्व-संग्रह। 12. अवस्थितस्य द्रव्यस्य...... - पातञ्जल योग 3/13 / 13. भगवती 16/6 / , 14. आगम युग का जैन दर्शन, पृ. 53 / 15. सूत्रकृतांग 1/14/22 / / 16. जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ जे आसवा ते परिस्सवा। आचारांग 3/74, 4/12 / 17. से नूणं भंते / अथिरे प्रलोट्टई, नो थिरे पलोट्टइ? अथिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ? हंता गोयमा। भगवती सूत्र 1/440 / 18. जीवाणं भंते / कि सासया? असासया? गोयमा। जीवा सिय सासया, सिय असासया। से केणखूण गोयमा। दव्वट्ठयाए सासया, भावट्ठयाए असासया। भग 7/58/59 / 19. सन्मति तर्क प्रकरण 3/48-52 / 20. जेण विणा लोगस्स.सन्मति 3/68 / 21. आप्तमीमांसा, गाथा, 23 /