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________________ 132 / माईती-दृष्टि प्रतिपक्ष में सह-अस्तित्व होता है। यह दार्शनिक सत्य अब वैज्ञानिक सत्य भी बन रहा है / वैज्ञानिक जगत् का प्रतिकण एवं प्रति पदार्थ का सिद्धान्त अनेकान्त के आलोक में एक नये तथ्य को उद्घाटित कर सकता है / वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि प्रति कण, कण का प्रतिद्वन्द्वी होते हुए भी उसका पूरक है। वे दोनों साथ-साथ रहते हैं। परस्पर एक-दूसरे का सहयोग करते और इनमें क्रिया-प्रतिक्रिया का व्यवहार भी चलता है। ___ अस्तित्व विरोधी युगलों का समवाय है / अनेकान्त ने इस सत्य का दर्शन किया है। विरोधी युगलों के सह-अस्तित्व की स्वीकृति के साथ ही उनके मध्य में रहे समन्वय सूत्रों का अन्वेषक भी अनेकान्त है। अनेकान्त के समन्वयात्मक स्वरूप को देखकर कुछ चिन्तकों ने कहा-अनेकान्त सापेक्ष दर्शन है / वह मात्र सापेक्ष सत्य की चर्चा करता है / जैन दर्शन में निरपेक्ष सत्य की स्वीकृति नहीं है / निरपेक्ष के बिना सापेक्ष कैसे होगा? आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रश्न को समाधान देते हए कहा-जैन दर्शन निरपेक्ष सत्य को भी स्वीकार करता है। निरपेक्ष के बिना सापेक्ष कैसे होगा? यह प्रश्न भी इसलिए उपस्थित हुआ कि अनेकान्त के स्वभाव को हृदयंगम नहीं किया गया। अनेकान्त का भी अनेकान्त है। आचार्य समन्तभद्र ने इस तथ्य को अभिव्यक्ति देते हए कहा-प्रमाण और नय की अपेक्षा अनेकान्त में भी अनेकान्त है। प्रत्येक नय एकान्त है। प्रत्येक नय का मत एक-दूसरे से भिन्न है। द्रव्यार्थिक नय वस्तु के ध्रौव्यांश का ग्राहक होता है / इस नय के अनुसार द्रव्य न उत्पन्न होता है, न नष्ट होता है, वह मात्र ध्रुव है। पर्यायार्थिक नय के अनुसार भाव उत्पन्न एवं विशरणशील है, ध्रुवता नाम का कोई तत्त्व नहीं है। दोनों नय का मन्तव्य पृथक् है। अनेकान्त का अर्थ है-अभिन्नता को स्वीकार और भिन्नता में सह-अस्तित्व की सम्भावना का अन्वेषण करना / एक विशिष्ट प्रकार की अपेक्षा से ध्रुवता और अनित्यता दोनों सत्य है / द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक दोनों नयों की वक्तव्यता यथार्थ हैं, अतः वे परस्पर सापेक्ष होकर यथार्थ है परस्पर निरपेक्ष होकर असत्य हो जाते हैं। अस्तित्व द्रव्य पर्यायात्मक है / द्रव्य की प्रधानता में द्रव्यार्थिक का मन्तव्य ठीक है। पर्याय की प्रधानता में पर्यायार्थिक का अभ्युपगम स्वीकरणीय है / जैन न्याय के अनुसार द्रव्य और पर्याय दोनों पारमार्थिक सत्य है। अन्य एकान्तवादी दर्शन जहाँ द्रव्य एवं पर्याय में किसी एक को सत्य मानने का आग्रह रखते हैं। उस अवस्था में अनेकान्त सत्य की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहता है कि सत्य उभयात्मक, द्रव्य पर्यायात्मक है। जब हमारा ज्ञान संश्लेषणात्मक होता है, तब द्रव्य दृष्टिगोचर होता
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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