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________________ 118 / आर्हती-दृष्टि सन्मति तर्क में कहा है पुरिसम्मि पुरिससद्दो जम्माई मरणकालपज्जन्तो। तस्स उबालाईया पज्जवजोया बहुवियप्पा / पुरुषरूप व्यञ्जन पर्याय को एकान्त रूप से अभिन्न नहीं माना जा सकता क्योंकि उसके बाल्य, यौवन आदि अवान्तर भेद होते हैं, अर्थात् पुरुषत्व इन अवान्तर पर्यायों का समुदाय है। इन अवान्तर पर्यायों के अभाव में पुरुषरूप व्यञ्जन पर्याय घटित नहीं हो सकती। सन्मति तर्क-प्रकरण में पुरुषत्व को व्यञ्जन पर्याय एवं उसके बाल्य, यौवन आदि भेदों को उस पुरुषरूप व्यञ्जन पर्याय के अर्थपर्याय भी कहा है 'वंजणपज्जायस्स उ 'पुरिसो' पुरिसो ति णिच्चमवियप्पो। बालाइ वियपं पुण पासई से अत्यपज्जाओ। यह अनुभवगम्य सत्य है कि एक ही वस्तु में निर्विकल्प अर्थात् अभिन्न और सविकल्प अर्थात् भिन्न बुद्धि होती है / जब 'पुरुष' इस प्रकार की निर्विकल्प बुद्धि उसके बारे में पैदा होती है, तब उसका विषय पुरुष पर्याय रूप एक अभिन्न व्यञ्जन पर्याय है और उसी पुरुष में पुरुष प्रतीति के समय जो बाल आदि अनेक विकल्प/भेद दिखाई देते हैं वे सब पुरुषरूप व्यञ्जनपर्याय के अर्थपर्याय हैं। पर्याय में सप्तभंगी की योजना . ___ अर्थ एवं व्यञ्जन पर्याय में सप्तभंगी की योजना भी ‘सन्मति तर्क' में की गयी है / अर्थ-पर्याय में सप्तभंगी के सातों विकल्प घटित हो सकते हैं किन्तु व्यञ्जन पर्याय में प्रथम दो अथवा अधिक-से-अधिक अस्ति-नास्ति क्रमवाला भंग और घटित हो सकता है। उसमें सातों भंग घटित नहीं हो सकते क्योंकि व्यञ्जन पर्याय शब्द सापेक्ष है / वक्तव्य एवं अवक्तव्य युक्त अस्ति-नास्ति में शब्द निरपेक्षता है / कहा है कि एवं सत्तवियप्पो वयणपहो होइ अत्थपज्जाए। वंजणपज्जाए उण सवियप्पो णिब्वियप्पो य / / . व्यञ्जन पर्याय को व्यक्त एवं अर्थपर्याय को अव्यक्त पर्याय भी कहा जाता है। स्वभाव पर्याय एवं विभाव पर्याय के अभिधान से क्रमशः अर्थपर्याय एवं व्यञ्जनपर्याय को अभिहित किया जाता है। सन्मति तर्क प्रकरण में व्यञ्जन एवं अर्थपर्याय से सम्बन्धित ऊहापोह विस्तारपूर्वक हुआ है, जो गम्भीर एवं मननीय है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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