________________ द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिकनय / 115 सिद्धसेन ने कहा है कि दोनों नय की संयुक्त वक्तव्यता स्वसमय अर्थात् जैन दृष्टि है तथा निरपेक्षता से कथन तीर्थकरों की आसातना है। जे वयणिज्जवियप्पा संजुज्जन्तेसु होंति एएसु। सा ससमयपण्णवणा तित्थयरासायणा अण्णा / उपसंहार नय सिद्धान्त की समुचित अवगति एवं व्यवस्था के द्वारा तत्त्व मीमांसीय आचारशास्त्रीय, सामाजिक, राजनैतिक आदि सभी प्रकार की समस्याओं का सम्यक् समाधान प्राप्त किया जा सकता है / विवाद वहां उपस्थित होता है जब यह कहा जाये 'I am right you are wrong' किन्तु जब परस्पर एक-दूसरे की अपेक्षा दृष्टि को समझ लिया जाता है तब विरोध या विवाद स्वतः समाहित हो जाता है अतः नयवाद का उपयोग मात्र सैद्धान्तिक क्षेत्र में ही नहीं है किन्तु जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसकी अत्यन्त उपयोगिता है।