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________________ " द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिकनय वस्तु अनन्त धर्मात्मक है / उसका विवेचन अनेक दृष्टिकोणों से किया जा सकता है। वस्तु विवेचन के जितने प्रकार हैं उतने ही नय हो सकते हैं—'जावइया वयणपहा तावइया चेव होंति णयवाया।' नय अनेक हैं परन्तु उन सबका समावेश संक्षेप में द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक इन दो नयों में हो जाता है / वस्तु का स्वरूप उभयात्मक है। आचार्य हेमचन्द्र ने कहा—'द्रव्यपर्यायात्मकं वस्तु' वस्तु द्रव्यात्मक एवं पर्यायात्मक है / अतः उसकी ज्ञप्ति के आधारभूत नय भी द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक भेद से दो प्रकार के हैं। द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक की परिभाषा सामान्य या अभेदमूलक समस्त दृष्टियों का समाहार द्रव्यार्थिक नय में तथा विशेष या भेदमूलक समस्त दृष्टियों का समावेश पर्यायार्थिक नय में हो जाता है। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने इन दो दृष्टियों का समर्थन करते हुए कहा है कि भगवान् महावीर के प्रवचन में मूलतः दो ही दृष्टियां हैं-द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक, शेष सभी दृष्टिकोण इन्हीं दो नयों के विकल्प हैं तित्थयरवयणसंगह-विसेसपत्यारमूलवागरणी। दवढिओ य फज्जवणओ य सेसा वियप्पा सिं॥ द्रव्यार्थिक प्रधानतया अभेदग्राही द्रव्यार्थिकः।। पर्यायार्थिक-प्रधानतया भेदग्राही पर्यायार्थिकः // वस्तु के द्रव्यात्मक स्वरूपको ग्रहण करने वाला द्रव्यार्थिक नय है तथा पर्यायात्मक स्वरूप का ग्राहक पर्यायार्थिक नय है / द्रव्यार्थिक नय अर्थात् अभेदगामी दृष्टि और पर्यायार्थिक नय अर्थात् भेदगामी दृष्टि / नय के भेद अनेकान्त का स्पष्टीकरण नयों के निरूपण से ही हो सकता है। ये दोनों नय ही समग्र विचार अथवा विचारजनित समग्रशास्त्र वाक्य के आधारभूत है। इन दो नयों . के निरूपण और इनके समन्वय में ही अनेकान्तवाद का पर्यवसान होता है। सन्मति
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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