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________________ 108 / आर्हती-दृष्टि है। जीवों के आगमन, गमन, मानसिक, वाचिक, कायिक क्रियाएं, आंखों के उन्मेष का कारण है। विश्व के सारे चल भाव धर्मास्तिकाय के कारण है। यदि यह नहीं होता तो पूरा विश्व ही अचल होता। गति में सहायता करना ही धर्मास्तिकाय का लक्षण जीव और पुद्गल के स्थिर रहने में सहायता देनेवाला तत्त्व अधर्मास्तिकाय कहलाता है / अधर्म भी लोकव्यापी, स्पर्श, रस वर्ण एवं गन्ध से रहित है / खड़ा रहना, बैठना, सोना, मन को एकाग्र करना मौन करना, शरीर को निस्पन्द बनाना आंखों का निमेष ये सब अधर्म द्रव्य की सहायता से ही होते हैं। यदि अधर्म द्रव्य नहीं होता तो सारा विश्व ही गतिमान होता। __गति और स्थिति दोनों सापेक्ष हैं / एक के अस्तित्व में दूसरे का अस्तित्व अत्यन्त अपेक्षित हैं। जीव और पुद्गल की गति एवं स्थिति में धर्म-अधर्म उपादान कारण नहीं है। किन्तु निमित्त कारण हैं / वे जीव और पुदगल को चलने एवं स्थिर रहने के लिए प्रेरित नहीं करते किन्तु यदि वे चलते एवं स्थिर रहते हैं तो धर्म, अधर्म उनको सहायता देते हैं / गति, स्थिति का मूल प्रेरक जीव एवं पुद्गल स्वयं है। जैसे मछली तैरना चाहती है तो वह बिना पानी तैर नहीं सकती, तैरने के लिए उसे पानी अत्यन्त अपेक्षित है। पथिक धूप से क्लान्त होकर ठहरना चाहता है / वृक्ष की छाया देखकर वह ठहर जाता है। वैसे ही धर्म एवं अधर्म ये दोनों तत्त्व जीव, पुद्गल की स्थिति, गति में अत्यन्त अपेशित हैं। ये दोनों तत्त्व स्वयं निष्क्रिय हैं। किन्तु सक्रिय पदार्थों को सहयोग देते हैं। लोक के आकार-प्रकार के लिए भी धर्म-अधर्म उत्तरदायी है। लोक का आकार त्रिशरावसम्पुटाकार माना जाता है वस्तुतः वह धर्मास्तिकाय एवं अधर्मास्तिकाय का ही आकार है। उसके आकार के आधार पर ही लोक के आकार की उपलक्षण से व्याख्या की गई है। लोक एवं अलोक के विभाजक तत्त्व भी धर्म एवं अधर्म है। अतएव विश्व व्याख्या के सिद्धान्त के सन्दर्भ में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जो जैन दर्शन की मौलिक अवधारणा है। वैज्ञानिक जगत् में भी ऐसी अवधारणा का स्वीकार, परिहार होता रहा है। परमाणु तत्त्ववाद के सम्बन्ध में जैन दर्शन की दूसरी मौलिक देन है परमाणु का सिद्धान्त। यद्यपि परमाणु के सन्दर्भ में भारतीय तथा पाश्चात्य दोनों दार्शनिकों ने विचार किया है / पाश्चात्य दर्शन में डेमोक्रेट्स परमाणुवाद के जनक माने जाते हैं और कुछ दार्शनिकों का अभिमत भी है कि भारत में परमाणुवाद का सिद्धान्त यूनान से आया है किन्तु यह तर्कसंगत नहीं लगता क्योंकि जैन के परमाणुवाद में तथा डेमोक्रेटस के परमाणुवाद "रहा ह
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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