________________ गुण पर्याय : भेद या अभेद / १०३चिन्तन का फलित होता है कि जीव अपने व्यवहार के लिए इनको पृथक् कर लेता है। गुण और पर्याय को व्यवहार के स्तर पर भिन्न माना जा सकता है निश्चयतः वे दोनों अभिन्न हैं। आचार्य सिद्धसेन ने तो गुण और पर्याय में ही अभेद कहा किन्तु आचार्य सिद्धसेनगणी ने तो निश्चयतः द्रव्य पर्याय को भी अभिन्न मानकर नय से भिन्नता का प्रतिपादन किया है अभिन्नांशमतं वस्तु तथोभयमयात्मकम्। प्रतिपत्तेरुपायेन नयभेदेन कथ्यते॥ अतः यह निर्विवाद स्वीकार किया जा सकता है कि गुण और पर्याय में मौलिक भेद नहीं है। उनका पारस्परिक भेद व्यावहारिक है। ..