________________ 100 / आर्हती-दृष्टि तिर्यंच, मनुष्य, ज्योतिष देव तथा व्यन्तर देव हैं / सूक्ष्म एकेन्द्रिय सम्पूर्ण लोक में व्याप्त है। चौदह रज्जु का लोक सातवें नरक महातम प्रभा के नीचे से प्रारम्भ होकर सिद्धशिला के अन्तिम छोर तक है / लोकपुरुष का आकार वर्तमान जैन प्रतीक के समान है / लोक की व्यवस्था चतुर्धा है / 'चतुर्धातत्स्थितिः' सबसे पहले आकाश, उसके ऊपर वायु, वायु के ऊपर पानी, पानी पर पृथ्वी तथा पृथ्वी पर त्रस-स्थावर जीव निवास करते हैं। आकाश द्रव्य आधारभूत है। शेष द्रव्य आधेय है / आकाश स्वप्रतिष्ठित है / आकाश अनंत प्रदेशी है किन्तु लोकाकाश असंख्य प्रदेशी है। यह दृश्यमान सम्पूर्ण जगत् लोकाकाश में ही स्थित है। पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय एवं काल की विवेचना अन्यत्र वाञ्छित है।