________________ द्रव्य एवं अस्तिकाय की अवधारणा / 99 है। काल से अनादि-अनन्त अर्थात् शाश्वत है / भाव से यह अमूर्त है / वर्ण, गंध, रस, स्पर्श रहित है अर्थात् अभौतिक एवं अचेतन है / गुण से अवगाहन गुण वाला है। समस्त आकाश द्रव्य अन्य द्रव्यों द्वारा अवगाहित नहीं है अतः एक होने पर अन्य द्रव्यों के अस्तित्व के कारण वह दो भागों में विभक्त है (1) लोकाकाश, (2) अलोकाकाश। द्रव्यानुयोगतर्कणा में कहा है धर्मादिसंयुतोलोकऽलोकस्तेषां वियोगतः। निरवधि: स्वयं तस्यावधित्वं तु निरर्थकम् / / आकाश का वह भाग जो धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल एवं जीव के द्वारा अवगाहित है, वह लोकाकाश है धम्माधम्मा पुग्गला काल जीवा यावदिये। आयासं सो लोगो तत्तो परदो अलोगो खं॥ जहाँ आकाश के अतिरिक्त अन्य द्रव्य नहीं है, वह अलोक है शेषद्रव्यशून्यमाकाशमलोकः / ' / अलोक एक विशाल गोले के समान है, जिसकी त्रिज्या अनंत है। धर्म आदि पाँच द्रव्यों को धारण करनेवाला लोकाकाश अनंत आकाश समुद्र में एक द्वीप के समान है। यहां यह तथ्य स्मरणीय है कि आकाश अखंड द्रव्य है। अन्य द्रव्यों के अस्तित्व के कारण ही वह लोक, अलोक रूप में विभक्त होता है। असीम आकाश का षड्द्रव्यात्मक भाग लोक है। वह चौदह रज्जु प्रमाण है। त्रिशरावसम्पुटाकार वाला है तथा तीन भागों में विभक्त है (1) ऊर्ध्व, (2) तिर्यकु (3) अधोलोक। ऊर्ध्वलोक सातरज्जु से कुछ कम है। वह वैमानिक देवता एवं सिद्धों का निवास स्थल है अधोलोक सात रज्जु से कुछ अधिक का है यह भवनपति देव तथा नारक जीवों का निवास स्थान है। तिर्यक् लोक अठारह सौ योजन का है। इसमें