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________________ नोआगमभाव मज्नुयोंमें धर्माधर्ममीमांसा स्तोक होते हैं, उनसे कालोदधि समुद्र सिद्ध संख्यातगुणे होते हैं, उनसे जम्बूद्वीप सिद्ध संख्यातगुणे होते हैं, उनसे धातकीखण्ड सिद्ध संख्यातगुणे होते हैं और उनसे पुष्करार्ध द्वीप सिद्ध संख्यातगुणे होते हैं। क्या यहाँ यह मान लिया जाय कि जो जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और पुष्कराचंद्वीपसे सिद्ध होते हैं वे केवल आर्यखण्डोंसे ही मोक्षलाभ करते हैं, म्लेच्छखण्डोंसे नहीं। और यदि उक्त प्रमाणके बलसे यह मान लिया जाता है जिसे माननेके लिए पर्याप्त आधार है कि वहाँसे भी बहुतसे मनुष्य सिद्ध होते हैं तो उनका वहाँ पर विहार करना और धर्मोपदेश देना भी बन जाता है / मूल आगमसे इसका निषेध न होकर समर्थन ही होता है। ____ जैन साहित्यमें यह भी बतलाया है कि चारण ऋद्धिधारी मुनि ढाई द्वीपके भीतर सर्वत्र संचार करते हैं। वे मेरू पर्वत और अन्य स्थानोंमें स्थित जिन चैत्यालयोंकी वन्दनाके लिए जाते हैं / साधारणतः ढाई द्वीपमें ऐसा कोई प्रदेश नहीं है जो उनके लिए अगम्य हो / महापुराणमें आचार्य जिनसेनने श्री ऋषभ जिनके पूर्वभवसम्बन्धी कथा प्रसङ्गसे बतलाया है कि जब भगवान् आदिनाथका जीव महाबल राजा थे तब उनका स्वयंबुद्ध मन्त्री मेरु पर्वतके अकृत्रिम चैत्यालयोंकी वन्दना करनेके लिए गये और वहाँ के सौमनसवनसम्बन्धी चैत्यालयमें उन्होंने चारण ऋद्धिधारी मुनिकी बन्दना कर महाबल राजाके सम्बन्धमें प्रश्न पूछा / इसी आशयको व्यक्त करनेवाली वहाँ एक दूसरी कथा आती है / उसमें बतलाया है कि जब भगवान् आदिनाथका जीव जम्बूद्वीपके उत्तरकुरुमें उत्तम भोगभूमिके सुख भोग रहे थे तब वहाँ पर आकर दो चारणऋद्धिधारी मुनियोंने उन्हें सम्बोधा। इससे स्पष्ट है कि चारणऋद्धिधारी मुनि ढाई द्वीपमें जिन चैत्यालयोंकी वन्दना करने के लिए तो जाते ही हैं / साथ ही वे आर्यक्षेत्रों के सिवा अन्य क्षेत्रोंमें धर्मोपदेश देनेके लिए भी जाते हैं। इसी प्रकार विद्याधरों और देवोंका भी ढाईद्वीपके सभी क्षेत्रोंमें गमनागमन होता रहता है यह भी आगमसे सिद्ध है, इसलिए पन्द्रह कर्मभूमियोंके पाँच म्लेच्छ
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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