SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ण, जाति और धर्म उसका आशय यही प्रतीत होता है कि जितने म्लेच्छ मनुष्य होते हैं उम सबके नीचगोत्रका उदय होता है / साथ ही उच्चगोत्रके लक्षणके प्रसङ्गसे कुछ विशेषणोंके साथ आर्योंकी सन्तान (परम्परा) को उच्चगोत्र कहा है / विदित होता है कि वीरसेन आचार्यको भी आर्य और म्लेच्छ मनुष्योंके वे लक्षण मान्य रहे हैं जिनका निर्देश तत्वार्थश्लोकवार्तिकमें आचार्य विद्यानन्दने किया है। ___आर्य और म्लेच्छ मनुष्योंका विशेष विचार त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदि. लोकानुयोगके ग्रन्थोंमें भी किया गया है। किन्तु वहाँ पर इन भेदोंको मुख्यरूपसे भूखण्डोंके आधारसे विभाजित किया गया है / वहाँ बतलाया है कि भरतक्षेत्र विजया पर्वतके कारण मुख्यरूपसे दो भागोंमें विभक्त हैउत्तर भरत और दक्षिण भरत / उसमें भी ये दोनों भाग गङ्गा और सिन्धु महानदियोंके कारण तीन-तीन भागोंमें विभाजित हो जाते हैं। विजयाके दक्षिणमें स्थित मध्यका भाग आर्यखण्ड है और शेष पाँच म्लेच्छ खण्ड हैं। आर्यखण्ड और म्लेच्छखण्डोंका यह विभाग विदेह क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्रमें भी उपलब्ध होता है / स्पष्ट है कि इन सब क्षेत्रोंके आर्यखण्डोंमें आर्य मनुष्य निवास करते हैं और म्लेच्छ खण्डोंमें म्लेच्छ मनुष्य निवास करते हैं / यहाँ जिन क्षेत्रोंमें रहनेवाले मनुष्योंको म्लेच्छ मनुष्य कहा गया है उनके म्लेच्छ होनेके कारणका निर्देश करते हुए आचार्य जिनसेन महापुराणमें कहते हैं कि ये लोग धर्म-कर्मसे रहित हैं, इसलिए म्लेच्छ माने गये हैं। यदि धर्म-कर्मको छोड़कर अन्य आचारको अपेक्षासे विचार किया जाय तो ये आर्यावर्त के मनुष्योंके हो समान होते हैं।' इस कथनका तात्पर्य यह है कि आर्यावर्त के मनुष्योंमें अन्य जो विशेषताएँ होती हैं वे सब विशेषताएँ इनमें भी उपलब्ध होती हैं। मात्र ये धर्म-कर्मसे रहित होते हैं, इसलिए म्लेच्छ माने गये हैं। - यहाँ पर प्रसङ्गसे इस बातका स्पष्टीकरण कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि सर्वार्थसिद्धि में आर्य और म्लेच्छ मनुष्योंका जिस रूपमें विचार
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy