________________ . नोआगमभाव मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा किया गया है, 'त्रिलोकप्रज्ञप्तिका विचार उससे कुछ भिन्न है / म्लेच्छोंके विचारके प्रसङ्गसे आचार्य पूज्यपाद यह नहीं कहते कि भरतादि क्षेत्रोंमें पाँच-पाँच म्लेच्छ खण्ड हैं और उनमें रहनेवाले मनुष्य ही म्लेच्छ हैं / वे तो कर्मभूमिज म्लेच्छोंमें मात्र शक, यवन, शवर और पुलिन्द आदिको ही गिनते हैं, इनके सिवा उनकी दृष्टिमें और भी कोई कर्मभूमिज म्लेच्छ हैं ऐसा सर्वार्थसिद्धिसे ज्ञात नहीं होता। इतना अवश्य है कि वहाँ पर आचार्य पूज्यपादने *द्धि रहित आर्योंके पाँच भेदोंमें एक भेद क्षेत्रार्यका भी उल्लेख किया है और इस परसे कई महानुभाव उनके मतसे म्लेच्छोंका भी एक भेद इसप्रकारका मानते हैं / परन्तु आचार्य पूज्यपाद ऐसा मानते थे ऐसा उनकी टीकासे ज्ञात नहीं होता, क्योंकि उन्होंने जिसप्रकार आर्योंके पाँच भेदोंका उल्लेख किया है उस प्रकार म्लेच्छोंके भेद नहीं किये हैं। . पद्मपुराणमें एक कथा आती है। उसमें बतलाया है कि 'विजयाध' के दक्षिण में और कैलाशके उत्तर में बहुतसे देश हैं। उनमें एक अर्धवर्वर नामका भी देश है / वहाँ पर संयमकी प्रवृत्ति नहीं है और वहाँ के रहनेवाले घोर म्लेच्छ और निपट अज्ञानी हैं / "उन्होंने आर्य देशों पर आक्रमण कर समस्त जगतको म्लेच्छमय बना डाला है / वे समस्त प्रजाको वर्णहीन बनाना चाहते हैं। उन्हें साधुओं, गायों और श्रावकोंकी जरा भी चिंता नहीं है / श्रादि / ' पद्मपुराणका यह उल्लेख इस बातका साक्षी है कि इस : भारतवर्षमें ही प्रारम्भसे कुछ ऐसी जातियाँ रही हैं जो आचार-विचारसे और कर्मसे हीन होने के कारण म्लेच्छ कही जाती थीं / आचार्य पूज्यपादने अपनी सर्वार्थसिद्धि टीकामें कर्मभूमिज म्लेच्छरूपसे जिन शक, यवनादिका : उल्लेख किया है वे यही हों यह बहुत सम्भव है। इस प्रकार मनुष्योंके आर्य और म्लेच्छ भेदोंके विषयमें जैन साहित्यमें जो उल्लेख मिलते हैं उन्हें संक्षेपमें इन शब्दोंमें व्यक्त करना ठीक होगा--बहुतसे मनुष्य आर्य क्षेत्रमें उत्पन्न होनेके कारण आर्य कहलाते हैं / परन्तु इनसे गुणार्य श्रेष्ठ हैं / जो मनुष्य प्रायः धर्म-कर्महीन म्लेच्छ क्षेत्रमें उत्पन्न होते हैं, परन्तु योग्य सम्पर्क