SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ བཏཾ། / वर्ण, जाति और धर्म किन्तु पन्द्रह कर्मभूमियोंमें उत्पन्न हुए जीव ही उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करते हैं यह जताने के लिए सूत्रमें 'कम्मभूमियस्स पदका निर्देश किया है / भोगभूमियोंमें उत्पन्न हुए जीवोंके समान देवों और नारकियोंके तथा स्वयंप्रभपर्वतके बाह्य भागसे लेकर स्वयम्भूरमण समुद्र तकके इस कर्मभूमिप्रतिभागमें उत्पन्न हुए तिर्यञ्चोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका प्रतिषेध प्राप्त होनेपर उसका निराकरण करनेके लिए 'अकम्मभूमियस्स' तथा 'कम्मभूभिपंडिभागस्स' पटोंका निर्देश किया है। सूत्रमें 'अकम्मभूमियरस' ऐसा कहने पर उससे देवों और नारकियोंका ग्रहण करना चाहिए / तथा 'कम्मभूमिपडिभागस्स' ऐसा कहने पर उससे स्वयंप्रभ नगेन्द्र के बाह्य भागमें,उत्त्पन्न हुए तिर्यञ्चोंका ग्रहण करना चाहिए।' यहाँ पर हमने सभी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवराशिको दो भागोंमें विभाजित कर विचार किया है। साथ ही मनुष्योंके दो भेदोंका अलगसे निर्देश कर दिया है / यहाँ पर भी यद्यपि मनुष्य क्षेत्रकी प्रधानतासे कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज या कर्मभूमिज और भोगभूमिज कहे गये हैं। परन्तु इससे भी मनुष्यशरीरोंका ग्रहण न कर नोआगमभावरूप मनुष्योंका ही ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि आगममें मनुष्य शब्दका व्यवहार मनुष्य पर्याय विशिष्ट जीवोंके लिए ही किया गया है। मनुष्योंके अन्य प्रकारसे दो भेद___जैन साहित्यमें मनुष्योंके कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज ( भोगभूमिज ) इन भेदोंके सिवा आर्य म्लेच्छ ये दो भेद और दृष्टिगोचर होते हैं / किन्तु इन नामोंका उल्लेख न तो षटखण्डागममें है, न कषायप्राभृतमें है और न कषायप्राभूतचूर्णिमें ही है। सर्वप्रथम इनका आभास हमें आचार्य कुन्दकुन्दके समयमाभृतकी एक गाथासे होता हुआ जान पड़ता है, क्योंकि उस गाथामें आचार्य कुन्दकुन्दने 'अनार्य' शब्दका उल्लेख किया है जो मनुष्योंके आर्य और अनार्य या आर्य और म्लेच्छ इन भेदोंको सूचित करता है / उन्होंने उस गाथामें अनार्य शब्दका उल्लेख भाषाकी दृष्टिसे
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy