SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ण, जाति और धर्म परिलक्षित नहीं होती। ऐसी सीमा बाँधनेके लिए उसे अन्य किसीके पास . जाकर प्रतिज्ञात होनेकी आवश्यकता नहीं है। मनमें संकल्प करके उसका निर्वाह करते रहनेसे भी काम चल सकता है। यदि कोई गृहस्थ किसी गुरुके पास जाकर प्रतिज्ञात होता है तो भी कोई हानि नहीं है। उससे लाभ हो है। पर एकमात्र वही मार्ग है ऐसा मानना उचित नहीं है, अन्यथा तिर्यञ्चोंमें देशविरतका स्वीकार करना नहीं बन सकेगा। यह गृहस्थधर्म और मुनिधर्मको स्वीकार करनेकी व्यवस्था है / इसपर दृष्टि डालनेसे भी विदित होता है कि इसमें वर्ण-व्यवस्थाके लिए कोई स्थान नहीं है। जिस धर्ममें सांसारिक प्रपञ्चमात्र हेव माना गया है उसमें आजीविकाके आधारसे धर्मको स्वीकार करने और न करनेका प्रश्न ही नहीं उठता। वर्णव्यवस्था आजीविकाका मार्ग है और धर्म मोक्षका मार्ग है। इन दोनोंका क्षेत्र ही जब अलग-अलग है तब एकके आधारसे दूसरेका विचार करना उचित कैसे कहा जा सकता है / . माना कि प्राचार्य जिनसेनने गर्भान्वय आदि क्रियाओं और दीक्षान्वय . आदि क्रियाओंका निर्देश करते हुए उनका उपदेश मुख्यतया ब्राह्मणोंके लिए दिया है / उन्होंने तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती और इन्द्रपद की प्राप्ति भी इन्हीं क्रियाओं द्वारा कराई है। वहाँ इन क्रियाओंको एक पर्याय तक सीमित न रख कर तीन पर्यायों तक इनका सम्बन्ध स्थापित किया गया है। जो साधारण गृहस्थ है उसके योग्य ये सब क्रियाएँ नहीं हैं। किन्तु जिसमें सब गृहस्थोंके स्वामी होनेकी क्षमता है, जो जिनदीक्षाफे बाद मुनिपदमें प्रतिष्ठित होकर तीर्थङ्कर प्रकृतिका बन्ध करनेका अधिकारी है, जो मर कर नियमसे देव होता है और वहाँ भी जो इन्द्रपदका भोक्ता होता है और जो पुनः मनुष्य होने पर चक्रवर्तीके पदके साथ तीर्थकर होकर निर्वाण प्राप्त करता है उसके लिए ये सब क्रियाएँ कही गई हैं। इनमें एक लिपि संख्यान क्रिया है। इस द्वारा तीन वर्णके मनुष्योंको ही लिपिज्ञानका अधिकार दिया गया है। शूद्र क्रियामन्त्र बिधिसे अक्षरशानको अधिकारी
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy