SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 408 वर्ण, जाति और धर्म में उत्पन्न हुए नारकी और देव कोई पाँचको उत्पन्न करते हैं-कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रु तज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं और कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं // 223 // तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हुए मनुष्य और तिर्यञ्च कोई छहको उत्पन्न करते हैं // 224 // तथा मनुष्योंमें उत्पन्न हुए तिर्यञ्च और मनुष्योंका भङ्ग चौथी पृथिवीके समान है / / 225 // देवगदीए देवा देवेहि उव्वविदचुंदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति // 226 // दुवे गदाओ आगच्छंति-तिरिक्खगदि मणुसगदिं चेदि // 227 // तिरक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा केइ छ उप्पाए ति // 228 // मणुसेसु उववण्णल्लया मणुसा केइ सव्वं उप्पाए ति केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएति केई सुदणाणमुप्पाए ति केई मोहिणाणमुप्पाए ति केई मणपजवणाणमुप्पाए ति केइ केवलणाणमुप्पाए ति केइ सम्मामिच्छत्तमुप्पाए ति केई सम्मत्तमुप्पाए ति केई संजमासंजममुप्पाएंति केई संजमं उप्पाएंति केई बददेवत्तमुप्पाए ति केई वासुदेवत्तमुप्पाएंति केई चक्कवट्टित्तमुप्पाएति केइ तित्थयरत्तमुप्पाए ति केइमंतयडा होदूण सिझति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वाणयंति सव्वदुःखाणमंतं परिविजाणंति // 226 // देवगतिमें देव देवगतिसे च्युत हो कर कितनी गतियोंको प्राप्त होते हैं // 226 // तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति इन दो गतियोंको प्राप्त होते हैं // 227 // देवगतिसे आकर तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हुए कितने ही तिर्यञ्च पूर्वोक्त छहको उत्पन्न करते हैं // 228 / / तथा मनुष्योंमें उत्पन्न हुए कितने ही मनुष्य कोई सबको उत्पन्न करते हैं-कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमको उत्पन्न करते
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy