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________________ 407 . चरित्रग्रहणमीमांसा होदूण सिझेति बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वाणयंति सव्वदुक्खाणमंतं परिविजाणंति // 220 // प्रथमादि तीन पृथिवियोंके नारकी नरकसे निकल कर कितनी गतियों को प्राप्त होते हैं // 217 // तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति इन दो गतियोंको ही प्राप्त होते हैं // 218 // नरकगतिसे आकर तिर्यञ्चगतिमें उत्पन्न हुए तिर्यञ्च कोई पूर्वोक्त छहको उत्पन्न करते हैं // 216 // मनुष्यगतिमें उत्पन्न हुए मनुष्य कोई ग्यारहको उत्पन्न करते हैं-कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं और कोई संयमको उत्पन्न करते हैं। ये बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती नहीं होते / कोई तीर्थङ्करपदको उत्पन्न करते हैं और कोई अन्तकृत होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, निर्वाणको प्राप्त होते हैं. और सब दुखोंका अन्तकर अनन्त सुखका अनुभव करते हैं // 220 // तिरिक्खा मणुसा तिरिक्ख-मणुसेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति // 221 // चत्तारि गदीओ गच्छंति-णिरयगदि तिरिक्खगदि मणुसगदिं देवगदि चेदि // 222 // णिरय-देवेसु उववण्णल्लया णिरय-देवा केई पंचमुप्पाएंति-केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति केई सुदणाणमुप्पाएंति केइमोहिणाणमुप्पाए ति केइ सम्मामिच्छत्तमुप्पाए ति केई सम्मत्तमुप्पाएति // 223 // तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खमणुसा केइं छउप्पाएति // 224 // मणुसेसु उववण्णल्लया तिरिक्ख-मणुस्सा जहा चउत्थपुढवीए भंगो // 225 // तिर्यश्च और मनुष्य तिर्यञ्च और मनुष्यगतिसे व्युत होकर कितनी गतियोंको प्राप्त होते हैं // 221 // नरकगति, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति और देवगति इन चारों गतियोंको प्राप्त होते हैं // 222 / / नरकगति और देवगति
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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