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________________ चरित्रग्रहणमीमांसा 406 हैं, कोई बलदेव होते हैं, कोई वासुदेव होते हैं, कोई चक्रवर्ती होते हैं और कोई अन्तकृत होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, निर्वाणको प्राप्त होते हैं और सब दुखोंका अन्तकर अनन्त सुखका अनुभव करते हैं // 226 // __ भवणवासिय-वाण-तर-जोदिसिय देवादेवीओ सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवीओ च देवा देवेहि उव्वट्टिदचुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति // 230 // दुवे गदीओ आगच्छंति-तिरिक्खगदि मणुसगदि चेदि // 231 // तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा के छ उप्पाए ति // 232 // मणुसेसु उववण्णल्लया मणुसा केई दस उप्पाए ति-केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएति केई सुदणाणमुप्पाएंति केइमोहिणाणमुप्पाए ति केइ मणपजवणाणमुप्पाए ति केई केवलणाणमुप्पाएंति केइ सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति केइ सम्मत्तमुप्पाएंति केइ संजमासंजममुप्पाए ति केहं संजममुप्पाए ति णो बलदेवत्तमुप्पाए ति णो वासुदेवत्तमुप्पाए ति णो चक्कवट्टित्तमुप्पाएति णो तित्थयरत्तमुप्पाएंति केइमंतयडा होदूण सिकंति बुज्झति मुच्चंति परिणिव्वाणयंति सव्वदुःखाणमंतं परिविजाणंति // 233 // ____ भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देव, उनकी देवाङ्गनाएँ तथा सौधर्म और ऐशान कल्पवासिनी देवाङ्गनाएँ वहाँसे मरकर कितनी गतियोंको प्राप्त होते हैं // 230 // तिर्यञ्चगति और मनुष्यगति इन दो गतियोंको प्राप्त होते हैं // 231 // उक्त स्थानोंसे आकर तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हुए कितने ही तिर्यञ्च छहको उत्पन्न करते हैं // 232 // तथा मनुष्यगतिमें उत्पन्न हुए कितने ही मनुष्य कोई दसको उत्पन्न करते हैं--कोई श्राभिनिबोधिक ज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न * करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमको उत्पन्न करते हैं, वहाँसे मरकर आए हुये जीव
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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