SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ण, जाति और धर्म उपस्थित होकर धर्मोपदेश सुनते हैं।' इस धर्मसभामें मनुष्योंमेंसे केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही उपस्थित हो सकते हों अन्य मनुष्य नहीं ऐसा नहीं है, क्योंकि धर्ममें जो योग्यता. ब्राह्मणादि वर्णवालोंकी मानी गई है वही योग्यता अन्य गर्भज मनुष्योंमें भी होती है, अन्यथा नीचगोत्री मनुष्य भी केवली और श्रुतकेवलीके पादमूलमें क्षायिकसम्यग्दर्शनको उत्पन्न करते हैं और वे देशचारित्र तथा सकलचारित्रको भी धारण करते हैं इस आशयका आगम वचन नहीं बन सकता है। वास्तवमें समवसरण एक धर्मसभा है। वहाँ मात्र मोक्षमार्गका उपदेश दिया जाता है, क्योंकि यह इसीसे स्पष्ट है कि आदिनाथ जिनने सराग अवस्थामें ही समाजव्यवस्थाके साथ आजीविकाके उपाय बतलाये थे, केवलज्ञान होने पर नहीं / इस अवस्थामें यही मानना उचित है कि अन्य वर्णवालों और म्लेच्छोंके समान शूद्र वर्णके मनुष्य भी समवसरण और जिन मन्दिर में जाकर धर्मलाभ लेने के अधिकारी हे / ___ अब थोड़ा आचारधर्मकी दृष्टि से विचार कीजिये / साधारणतः यह नियम है कि मुनिधर्मको वही मनुष्य स्वीकार करता है जिसके चित्तमें संसार, देह और भोगोंके प्रति भीतरसे पूर्ण वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। इस स्थितिमें वह अपने इस भावको अन्य कुटुम्बी इष्ट-मित्रों के प्रति व्यक्त कर उनकी अनुज्ञापूर्वक वनका मार्ग स्वीकार करता है और वहाँ दीक्षकाचार्योंकी कुलपरम्परासे सम्बन्ध रखनेवाले ज्ञान-विज्ञानसम्पन्न, अनुभवी और प्रशममति किसी आचार्यके सानिध्यमें अन्तरङ्ग परिग्रहके त्यागके लिए उद्यत हो बाह्य परिग्रहके त्यागपूर्वक मुनिधर्मको अङ्गीकार करता है। किन्तु इतना सब 1. तिलोयपण्णत्ति श्लो० 162 / 2. जीवस्थान सम्यक्त्वोत्पत्ति चूलिका सू० 11 गोम्मटसार कर्मकाण्ड गा० 326 / 3. महापुराण 50 24 श्लो० 06 /
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy