________________ वर्णमीमांसा 376 और श्राश्रमवालोंके अपने अपने आचारसे च्युत होने पर त्रयीके अनुसार शुद्धि होती है // 16 // -नीतिवाक्यामृत त्रयीसमुद्देश ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्राश्च वर्णाः // 6 // ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं // 6 // -नीतिवाक्यामृत विद्यावृद्धसमुद्देश स देशोऽनुसतम्यो यत्र नास्ति वर्णशंकरः // 55 // जिस देशमें एक वर्णका मनुष्य दूसरे वर्णका कर्म नहीं करता है उस देशमें रहना चाहिए। . -नीतिवाक्यामृत सदाचारसमुद्देश षट्कर्मजीवनोपायः सन्मियुज्याकुलाः प्रजाः / येन कल्पद्रुमापाये कल्पवृक्षायितं पुनः // 3-55 // . आदिनाथ जिनेन्द्र कल्पवृक्षोंका अभाव होने पर आजीविकासे अाकुल हुई प्रजाको आजीविकाके उपायरूप छह कर्मों में लगाकर स्वयं कल्पवृक्षके समान सुशोभित होने लगे // 3-55 / / -वर्धमानचरित 'हउं वरु बंभणु वइसु हउं खत्तिउ हउं सेसु' अहं वरो विशिष्टो ब्राह्मणः अहं वैश्यो वणिक् अहं क्षत्रियोऽहं श्रेषः शूद्रादिः। पुनश्च कथंभूतः ? 'पुरिसु णउंसउ इथि हउं मण्णइ मूढ विसेसु' पुरुषो नपुंसकः स्त्रीलिङ्गोऽहं मन्यते मूढो विशेषं ब्राह्मणादिविशेषमिति / इदमत्र तात्पर्यम्यनिश्चयनयेन परमात्मनो भिन्नानपि कर्मजनितान् ब्राह्मणादिभेदान् सर्वप्रकारेण हेतुभूतानपि. निश्चयनयेनोपादेयभूते वीतरागसदान्दैकस्वभावे स्वशुद्धात्मनि योजयति सम्बद्धान् करोति / कोऽसौ कथंभूतः ? अज्ञानपरिणतः स्वशुद्धात्मतत्त्वभावनारहितो मूढात्मेति // 8 // . 'आशय यह है.. कि यद्यपि ये ब्राह्मण आदि भेद कर्मके निमित्तसे उत्पन्न हुए हैं फिर भी जो आत्मा अज्ञानी अर्थात् अपने शुद्ध आत्म