________________ वर्णमीमांसा 366 अनन्तर दयालु प्रजापति ऋषभदेवने समस्त प्रजाको क्षुधासे पीड़ित देखकर दिव्य आहारों द्वारा उसके कष्टको दूर किया // 6-33 / / राजा ऋषभदेवने प्रजाकी आजीविकाको सिद्धिके लिए धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थके साधनरूप सब उपाय बतलाये ||6-34 // सर्व प्रथम उसे सुखी करनेके लिए उपाय सहित असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन छह कर्मोंका उपदेश दिया / / 6-35 / / अनन्तर पशुपालन और गाय, भैंस आदिके संग्रहकी तथा सिंह आदि क्रूर जीवोंके निवारण करनेकी यथायोग्य शिक्षा दी / / 6-36 / / उनके सौ पुत्रोंने और प्रजावर्गने कला शास्त्रका ज्ञान प्राप्त कर सैकड़ों शिल्पियोंका निर्माण किया // 6-37 / / फलस्वरूप उन शिल्पियोंने भारतभूमिमें खेट और कीटके साथ ग्राम और संनिवेशोंको रचना की // 6-38 / / आपत्तिसे रक्षा करनेके कारण क्षत्रिय; व्यापारके निमित्तसे वैश्य और शिल्पकर्म आदिके सम्बन्धसे शूद्र ये तीन वर्ण उत्पन्न हुए // 6-36 // इन छह कर्मोंके आश्रयसे प्रजा यथार्थरूपमें सुखी हो गई, अतः सन्तुष्ट हो उसने उस युगको कृतयुग इस नामसे अभिहित किया // 6-40 // -हरिवंशपुराण असिमषिः कृषिविद्या वाणिज्यं शिल्पमेव च / कर्माणीमानि षोढा स्युः प्रजाजीवनहेतवः // 16-176 // तत्र वृत्ति प्रजानां स भगवान् मतिकौशलात् / उपादिक्षत् सरागो हि स तदासीजद्गुरुः // 16-180 // तत्रासिकर्म सेवायां मषिलिपिविधौ स्मृता। कृषिभूकर्षणे प्रोक्ता विद्या शास्त्रोपजीवणे // 16-18 // वाणिज्यं वणिजां कर्म शिल्पं स्यात् करकौशलम् / तच्च चित्रकलापत्रच्छेदादि बहुधा स्मृतम् // 16-182 // उत्पादितास्त्रयो वर्णास्तदा तेनादिवेधसा / चत्रिया वणिजः शूद्राः क्षतत्राणादिभिर्गुणैः // 16-183 //