________________ वर्ण, जाति और धर्म बड़े होनेसे भगवान् श्रादिनाथ ब्रह्मा माने गये हैं और उनके जो' भक्तजन रहे हैं वे लोकमें ब्राह्मण इस नामसे प्रख्यात हुए हैं॥११-२०१।। आपत्तिसे रक्षा करनेके कारण क्षत्रिय और शिल्पमें प्रवेश पानेके कारण वैश्य कहे गये हैं। तथा श्रुत अर्थात् सदागमसे जो दूर भाग खड़े हुए वे शूद्र इस नामको प्राप्त हुए // 11-202 // चातुर्वर्ण्य तथा चाण्डाल आदि अन्य जितने भी विशेषण हैं वे सत्र आचार भेदके कारण लोकमें प्रसिद्धिको प्राप्त हुए हैं // 11-205 // -पनचरित ततो वीच्य क्षुधाक्षीणाः प्रजाः सर्वाः प्रजापतिः। कृत्वार्तिहरणं तासां दिव्याहारैः कृपान्वितः // 6-33 // सर्वानुपदिदेशासौ प्रजानां वृत्तिसिद्धये / उपायान् धर्मकामार्थान् साधनानपि पार्थिवः // 6-34 // असिमषिः कृषिर्विद्या वाणिज्यं शिल्पमित्यपि / षट्कर्म शर्मसिद्धयर्थ सोपायमुपदिष्टवान् // 6-35 // पशुपाल्यं ततः प्रोक्तं गोमहिष्यादिसंग्रहः / वर्जनं करसत्त्वानां सिंहादीनां यथायथम् // 6-36 // ततः पुत्रशतेनापि प्रजया च कलागमः / गृहीतः सुगृहीतं च कृतं शिल्पिशतं जनः // 6-37 // पुरग्रामनिवेशाश्च ततः शिल्पिजनैः कृताः। सखेटकवटाख्याश्च सर्वत्र भरतक्षितौ // 6-38 // क्षत्रियाः क्षततस्त्राणाद्वेश्या वाणिज्ययोगतः / शुद्धाः शिल्पादिसम्बन्धाजाता वर्णास्त्रयोऽप्यतः // 6-36 // * षड्भिः कर्मभिरासाद्य सुखितामर्थवत्तया। प्रजाभिस्तत्सुतुष्टाभिः प्रोक्तं कृतयुगं युगम् // 6-40 //