________________ वर्णमीमांसा 367 अनन्तर चित्तसे परम कृपालु ऋषभदेवने हाथ जोड़कर चरणोंमें बैठी हुई प्रजाको सैकड़ों प्रकारको शिल्पकला, नगरों और ग्रामोंकी रचना तथा मकान आदि बनानेकी सब विधि बतलाई / / 3-254,255 / / उन्होंने जिन्हें आपत्तिसे रक्षा करनेमें नियुक्त किया वे अपने इस गुणके कारण इस लोकमें क्षत्रिय इस नामसे प्रसिद्ध हुए / / 3-256 // जो वाणिज्य, कृषि और गोरक्षा आदि व्यापारमें नियुक्त किये गये वे लोकमें वैश्य इस नामसे सम्बोधित किये गये // 3-257 // तथा जो इन सब बातोंको सुनकर लज्जित हुए और नीच कर्म करने लगे, वे शूद्र कहे गये। उनके प्रेष्य आदि नाना भेद हुए // 3-258 // यतः. आदिनाथने अपने राज्यकालमें सुखकर युगकी रचना की, इसलिए प्रजाने हर्षित होकर उसे कृतयुग कहा // 3-256 // यदा तदा समुत्पन्नो नाभेयो जिनपुङ्गवः / राजन् तेन कृतः पूर्वः कालः कृतयुगामिधः॥५-१६३॥ कल्पिताश्च त्रयो वर्णाः क्रियाभेदविधानतः / / शस्यानां च समुत्पत्तिर्जायते कल्पतो यतः // -164 // जब भोगभूमिका अन्त हुआ तब नाभिराजाके पुत्र तीर्थङ्कर ऋषभदेव उत्पन्न हुए / हे राजन् ! उन्होंने कृतयुग कालकी रचना की // 5-163 / / तथा क्रियाके भेदसे तीन वर्ण बनाये, क्योंकि उस समयसे धान्य आदि उत्पन्न होने लगे / / 5-164 // बृहत्वाद्भगवान् ब्रह्मा नाभेयस्तस्य ये जनाः। भक्ताः सन्तस्तु पश्यन्ति ब्राह्मणास्ते प्रकर्तिताः॥११-२०१॥ क्षत्रियास्तु क्षतत्राणाद्वैश्याः शिल्पप्रवेशनात् / श्रुतात्सदागमाद्ये तु द्रुतास्ते शूद्रसंज्ञिताः // 11-202 // चातुर्वण्यं यथान्यच्च चाण्डालादिविशेषणम् / सर्वमाचारभेदेन प्रसिद्धिं भुवने गतम् // 11-205 //