________________ - वर्ण, जाति और धर्म अनिवृत्तिकरणे षट् संयोज्यानुदयश्चत्वारिंशत् 40, उदयः षट्षष्ठिः 66 / सूचमसाम्पराये षट् संयोज्यानुदयः षट्चत्वारिंशत् 46, उदयः षष्टिः / उपशान्तकषाये एका संयोज्यानुदयः सप्तचत्वारिंशत् 47, उदयः एकानषष्टिः 56 / क्षीणकषाये द्वे संयोज्यानुदय एकानपञ्चाशत् 46 / उदयः सप्तपञ्चाशत् 57 / सयोगे षोडश संयोज्य तीर्थोदयादनुदयः चतुःषष्टिः, उदयो द्वाचत्वारिंशत् / अयोगे त्रिंशतं संयोज्यानुदयश्चतुर्णवतिः 14, उदयो द्वादश 12 / क्षायिकसम्यग्दृष्टि देशसंयत गुणस्थानवर्ती मनुष्य ही होइ तिथंच न होइ तातै तिर्यचायु 1 उद्योत 1 तियंचगति 1 इन तीनका उदय पंचम गुणस्थानविर्षे नाहीं। इनकी व्युच्छित्ति चौथे ही भई यात असंयतविर्षे व्युच्छित्ति गुणस्थानवत् सत्रह अर तिर्यचायु उद्योत तिथंचगति तीन ए ऐसे वीस व्युच्छित्ति है बहुरि देशसंयतवि. ते तीन नाहीं तातै प्रत्याख्यान कषाय च्यारि 4 नीचगोत्र 1 ऐसे पाँच व्युच्छित्ति हैं। प्रमत्तविर्षे गुणस्थानवत् पाँच, अप्रमत्तविर्षे सम्यक्त्व मोहनी नाहीं तातें तीन, बहुरि अपूर्वकरणादिक विर्षे गुणस्थानवत् छह छह एक दोय सोलह तीस बारह व्युच्छित्ति जाननी ऐसे होते असंयतवि. आहारकद्विक तीर्थंकर, ए अनुदय तीन उदय एकसौ तीन बहुरि व्युच्छित्ति बीस तातें देशसंयतविर्षे अनुदय तेईस उदय तियासी बहुरि व्युच्छित्ति पाँचका अनुदय आहारकद्विकका उदय तातै प्रमत्तविर्षे अनुदय छब्बीस उदय असी बहुरि अप्रमत्तादिक विर्षे नीचली व्युच्छित्ति मिलाए अनुदय अनुक्रमतें इकतीस चौंतीस चालीस छियालीस सैंतालीस गुणचास जानना / बहुरि व्युछित्ति सोलह तीर्थंकरका उदय तातै सयोगी विर्षे अनुदय चौसठि बहुरि व्युच्छित्ति तीस तातें अयोगी विषै अनुदय चौराणवै बहुरि अप्रमत्तादिक विषै उदय अनुक्रमतै पिचहत्तरि बहत्तरि छ्यासठि साठि गुणसठि सत्तावन बियालीस बारह जानना / -गो० क०, गा० 326, जी० न० टी०