________________ 330 वर्ण, जाति और धर्म ___समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वहाँ पर भी उच्चगोत्रके निमित्तसे उत्पन्न हुई संयमकी योग्यताको अपेक्षा उच्चगोत्र होनेमें कोई विरोध नहीं है। ___-उदीरणा अनु० धवला उवघादादावुस्सास-अप्पसत्थ विहायगइ-तस-थावर-बादर-सुहुमसाहारण-पज्जत्तापज्जत्त- दूभग-दुस्सर-अणादेज्ज-अजसकित्ति - णीचा गोदाणमुदीरणा एयंतभवपच्चइया / . उपघात, आतप, उच्छ्रास, अप्रशस्तविहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, साधारण, पर्याप्त, अपर्याप्त, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयशःकीर्ति और नीचगोत्रकी उदीरणा एकान्तसे भवके निमित्तसे होती है / -उपक्रम अनुयोगद्वार, धवला टीका, पु० 15 पृ० 173 सुभग-आदेज्ज-जसगित्ति-उच्चागोदाणमुदीरणा गुणपडिवण्णेसु परिणामपञ्चइया। अगुणपडिवण्णेसु भवपञ्चइया / को पुण गुणो ? संजमो संजमासंजमो वा। सुभग, आदेय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्र इनकी उदीरणा गुणप्रतिपन्न जीवोंमें परिणामोंके निमित्तसे होती है और अगुणप्रतिपन्न जीवोंमें भवके निमित्तसे होती है। गुण पदसे यहाँ पर क्या लिया गया है ? गुणपदसे यहाँ पर संयम और संयमासंयम ये दो लिए गये हैं। तात्पर्य यह है कि संयमासंयम और संयम गुणस्थानोंके प्राप्त होनेपर नीचगोत्री भी उच्चगोत्री हो जाते हैं / और जो विवक्षित पर्यायमें इन गुणस्थानोंमें नहीं जाते हैं उनके भवके प्रथम समयमें जो गोत्र होता है वही रहता है। यही बात यहाँ कहे गये अन्य कर्मोके विषयमें जाननी चाहिए / -उपक्रम अनुयोगद्वार, धवला टोका, पु० 15 पृ० 173 उच्चागोदस्स मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलिचरिमसमओ त्ति उदीरणा / णवरि मणुस्सो वा मणुस्सिणी वा सिया उदीरेदि / देवो देवी