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________________ गोत्र-मीमांसा 331 वा संजदो वा णियमा उदीरेंति / संजदासंजदो सिया उर्दारेदि / णीचा. गोदस्स मिच्छाइटिप्पहुडि जाव संजदासंजदस्स उदीरणा / णवरि देवेसु पत्थि उदीरणा। तिरिक्ख-णेरहएसु णियमा उदीरणा। मणुसेसु सिया उदीरणा। उच्चगोत्रकी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक उदीरणा होती है। इतनी विशेषता है कि मनुष्य और मनुष्यिनी स्यात् उदीरणा करते हैं। देव, देवी और संयत नियमसे उदीरणा करते हैं। संयतासंयत स्यात् उदीरणा करता है। नीचगोत्रकी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक उदीरणा होती है। इतनी विशेषता है कि देवोंमें इसकी उदीरणा नहीं है। तिर्यञ्च और नारकियोंमें नियमसे उदोरणा है / मनुष्योंमें स्यात् उदीरणा है। --उपक्रम अनुयोगद्वार धवला टीका पु० 15 पृ० 61 ... उच्चा-णीचागोदाणं जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण णीचागोदस्स सागरोवमसदपुधत्तं, उच्चागोदस्स उदीरणंतरमुक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा / .. उच्चगोत्र और नीचगोत्रका जघन्य उदीरणा अन्तर एक समय है और नीचगोत्रका उत्कृष्ट उदीरणा अन्तर सौ सागर पृथक्त्वप्रमाण है और उच्चगोत्रका उत्कृष्ट उदीरणा अंन्तर असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। -उपक्रम अनुयोगद्वार, धवला टीका, पु० 15 पृ० 71 णीचागोदस्स जह० एगसमओ, उच्चागोदादो णीचागोदं गंतूण तत्थ एगसमयमच्छिय विदियसमए उच्चागोदें उदयमागदे एगसमओ लब्भदे / उक्क० असंखेजा पोग्गलपरियहा। उच्चागोदस्स जह० एगसमओ, उत्तरसरीरं विउब्विय एगसमएण मुदस्स तदुवलंभादो / एवं णीचागोदस्स वि / उक्क० सागरोवमसदपधत्तं /
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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