________________ क्षेत्रकी दृष्टिसे दो प्रकारके मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 315 उत्तर-दक्खिणभरहे खंडाणि तिणि होति पत्तेक्कं / दक्खिणतियखंडेसुं अजाखंडो त्ति मज्झिम्मो // 4-267 // सेसा वि य पंच खण्डा णामेणं होंति मेच्छखण्डं ति // 4-268 // उत्तर और दक्षिण भरतमें अलग-अलग तीन खण्ड हैं / दक्षिणके तीन खण्डोंमें मध्यका आर्य खण्ड है // 267 // और शेष पाँच म्लेच्छ खण्ड हैं // 268 // पणमेच्छखयरसेढिसु अपसप्पुस्सप्पिणीए तुरमम्मि / तदियाए हाणिचयं कमसो पढमादु चरिमो त्ति // 4-1607 // पाँच म्लेच्छखण्ड और विद्याधर श्रेणियोंमें अवसर्पिणीके चतुर्थ कालमें और उत्सर्पिणीके तृतीय कालमें प्रारम्भसे लेकर अन्त तक क्रमसे हानि और वृद्धि होती है // 1606 // . -त्रिलोकप्रज्ञप्ति पूर्वार्ध आर्यदेशाः परिध्वस्ता म्लेच्छरुद्वासितं जगत् / एकवर्णाः प्रजा सर्वां पापाः कतुं समुद्यताः // 27-14 // म्लेच्छोंने आर्यदेश ध्वस्त कर दिये और समस्त जगत्को उद्बासित कर दिया। वे पापाचारी समस्त प्रजाको वर्ण विहीन करनेके लिए उद्यत हुए हैं // 27-14 // --पनचरित ___ अड्डाइजदीवसमुदृष्टिदसव्वर्जीवेसु दंसणमोहक्खवणे पसंगे तप्पडिसेहढं पण्णारसकम्मभूमीसु ति भणिदे भोगभूमीओ पडिसिद्धाओ। कम्मभूमीसु हिददेवमणुसतिरिक्खाणं सब्वेसि पि गहणं किण्ण पावेदि त्ति भणिदे ण पावेदि, कम्मभूमीसुप्पण्णमणुस्साणमुवयारेण कम्मभूमिववदेसादो। तो वितिरिक्खाणं गहणं पावेदि, तेसिं तत्थ वि उप्पत्तिसंभवादो? ण, जेसि तत्थेव उप्पत्ती ण अण्णस्थ संभवो अस्थि तेसिं चेव मणुस्साणं पण्णारसकम्मभूमिववएसो ण तिरिक्खाणं सयंपहपब्वदपरमागे ... उप्पज्जणेण सव्वहिचाराणं / उत्तं च