________________ 316 वर्ण, जाति और धर्म दसणमोहक्खवणापट्ठवओ कम्मभूमिजादो दु। णियमा मणुसगदीए गिट्ठवओ चावि सम्वत्थ // . . ढाई द्वीप और दो समुद्रोंमें स्थित सब जीवोंके दर्शन मोहनीयकी क्षपणाका प्रगङ्ग प्रास होनेपर उसका निषेध करने के लिए 'पन्द्रह कर्मभूमियों में यह कहा है। इससे भोगभूमियोंका निषेध हो जाता है ! शंका-कर्मभूमियोंमें स्थित देव, मनुष्य और तिर्यञ्च इन सबका ग्रहण क्यों नहीं प्राप्त होता ? साधन-नहीं प्राप्त होता, क्योंकि कर्मभूमियोंमें उत्पन्न हुए मनुष्योंको ही यहाँपर उपचारसे कर्मभूमि संज्ञा दी है। शंका-तो भी तिर्यञ्चोंका ग्रहण प्राप्त होता है, क्योंकि उनकी वहां भी उत्पत्ति सम्भव है ? समाधान नहीं, क्योंकि जिनकी वहींपर उत्पत्ति सम्भव है, अन्यत्र उत्पत्ति सम्भव नहीं, उन्हीं मनुष्योंकी 'पन्द्रह कर्मभूमि' संज्ञा है, तिर्यञ्चोंकी नहीं, क्योंकि स्वयंप्रम पर्वतके परभागमें उत्पन्न होनेसे वहाँ तिर्यञ्चोंकी यह संज्ञा माननेपर उसका व्यभिचार देखा जाता है / कहा भी है___ दर्शनमोहनीयकी क्षपणाका प्रस्थापक कर्मभूमिमें उत्पन्न हुआ नियम से मनुष्यगतिका जीव ही होता है। किन्तु उसका निष्ठापक चारों गतिका जीव होता है। -जीवस्थान चूलिका धवला पृ० 244 कम्मभूमियस्स संजमं पडिवज्जमाणस्स जहण्णसंजमठाणमणंतगुणं / कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूणुप्पत्तीदो। ( अकम्मभूमियस्स संजमं पडिवजमाणयस्स जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं / कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूगुप्पत्तीदो।) तस्सेत उक्कस्सयं संजमं पडिवज्जमाणस्स संजमाणमणंतगुणं / कुदो ? असंखेजलोगमेत्तछठाणाणि उवरि गंतूणुप्पत्तीदो। कम्मभूमियस्स संजमं