________________ * क्षेत्रकी दृष्टिसे दो प्रकारके मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 313 जहण वि सक्कमणज्जो अणजभासं विणा उ गाडेउ। तह ववहारेण विणा परमत्थुवएसणमसकं // 8 // -समयसार जिस प्रकार अनार्य पुरुष अनार्य भाषाके विना उपदेश ग्रहण करनेके लिए समर्थ नहीं होता उसी प्रकार व्यवहारका आश्रय लिए बिना परमार्थका उपदेश करना अशक्य है / ( इस गाथामें अनार्य शब्द आया है / इससे विदित होता है कि समयसारकी रचनाके समय मनुष्य आर्य और अनार्य इन दो भागों में विभक्त किये जाने लगे थे। // 8 // माणुस्सा दुवियप्पा कम्ममहीभोगभूमिसंजादा // 16 // मनुष्य दो प्रकारके हैं-कर्मभूमिज और भोगभूमिज // 16 // -नियमसार आर्या म्लेच्छाश्च // 3-44 // मनुष्य दो प्रकारके हैं.–आर्य और म्लेच्छ // 3-45 // -तत्त्वार्थसूत्र गुणगुणवद्भिर्वा अर्यन्त इत्याः / ते द्विविधा-ऋद्धिप्राप्तार्या अनृद्धिप्रामाश्चेिति / 'अनृद्धिप्राप्ताः पञ्चविधा:-क्षेत्रार्या जात्यार्याः कार्याश्चारित्रार्या दर्णनार्याश्चेति / ऋद्धिप्राप्तार्या सप्तविधाः बुद्धिविक्रियातपोबलौषधरसाक्षीणभेदात् / म्लेच्छा द्विविधा-अन्तीपजाः कर्मभूमिजाश्चेति / x x x त एतेऽन्तीपजा म्लेच्छाः / कर्मभूमिजाश्च शकयवनशवरपुलिन्दादयः। ___ जो गुणों और गुणवालोंके द्वारा माने जाते हैं वे आर्य कहलाते हैं / वे दो प्रकारके हैं-ऋद्धिप्राप्त आर्य और ऋद्धिरहित आर्य / ऋद्धिरहित आर्य पाँच प्रकारके होते हैं-क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कार्य, चारित्रार्य और दर्शनार्य / ऋद्धि प्राप्त आर्य बुद्धि, विक्रिया, तप, बल, औषध, रस और अक्षीण ऋद्धिके भेदसे सात प्रकारके होते हैं। म्लेच्छ दो प्रकारके होते