________________ 312 वर्ण, जाति और धर्म अंतोमुहुत्तमद्धं सव्वोवसमेण होइ उवसंतो। तत्तो परमुदयो खलु तिण्णेक्कदरस्स कम्मस्स // 103 // इस जीवके दर्शनमोहनीयकर्म अन्तर्मुहूर्त कालतक सर्वोपशमसे उपशान्त रहता है / इसके बाद मिथ्यात्व आदि तीनोंमेंसे किसी एकका नियमसे उदय होता है // 10 // दसणमोहक्खवणापट्ठवगो कम्मभूमिजादो दु / णियमा मणुसगदीए णिवगो चावि सम्वत्थ // 11 // कर्मभूमिमें उत्पन्न हुआ मनुष्यगतिका जीव ही दर्शनमोहनीयकी दपणाका प्रस्थापक (प्रारम्भ करनेवाला) होता है। किन्तु उसका निष्ठापक (पूर्ण करनेवाला) चारों गतियोंमें होता है // 110 // खवणाए पट्ठवगो जम्हि भवे णियमसा तदो अण्णो / णाधिच्छदि तिणिभवे दंसणमोहम्मि खीणम्मि / / 113 // यह जीव जिस भवमें दर्शनमोहनीयकी क्षपणाका प्रस्थापक होता है उससे अन्य तीन भवोंको नियमसे उल्लंघन नहीं करता है। दर्शनमोहनीयके क्षीण होने पर इस कालके भीतर नियमसे मुक्त हो जाता है / / 113 / / -कषायप्राभूत कम्मभूमियस्स पडिवजमाणयस्स जहण्णयसंजमट्टाणमणंतगुणं / अकम्मभूमियस्स पडिवजमाणयस्स जहण्णयं संजमहागमणंतगुणं / तस्सेवुकस्सयं पडिवजमाणयस्स संजमट्ठाणमणंतगुणं / कम्मभूमियस्स पडि. वजमाणयस्स उक्कस्सयं संजमाणमणंतगुणं / इससे संयमको प्राप्त होनेवाले कर्मभूमिज मनुष्यका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है / इससे संयमको प्राप्त होनेवाले अकर्मभूमिज मनुष्यका जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है। इससे संयमको प्राप्त होनेवाले इसी अकर्मभूमिज मनुप्यका उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है। इससे संयमको प्राप्त होनेवाले कर्मभूमिज मनुष्यका उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है। कषायप्राभूत चूर्णि पृ० 673-674