________________ क्षेत्रकी दृष्टिसे दो प्रकारके मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 311 वा संखेजवासाउअस्स वा असंखेजवासउअस्स वा देवस्स वा मणुसस्स वा तिरिक्खस्स वा जेरइयस्स वा इस्थिवेदस्स वा पुरिसवेदस्स वा गउंसयवेदस्स वा जलचरस्स वा थलचरस्स वा खगचरस्स वा सागार-जागार सुदोवजोगजुत्तस्स उक्कस्सियाए हिदीए उकस्सटिदिसंकिलेसे वट्टमाणस्स अधवा ईसिमज्झिमपरिणामस्स तस्स गाणावरणीयवेयणा कालदो उक्कस्सा // 8 // ___ जो पञ्चेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि और सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, कर्मभूमिज है, अकर्मभूमिज है या कर्मभूमिके पासके क्षेत्रका निवासी है, संख्यात वर्षकी श्रायुवाला या असंख्यात वर्षकी आयुवाला है, देव, मनुष्य तिर्यञ्च या नारकी है, स्त्रीवेदवाला, पुरुषवेदवाला या नपुंसकवेदवाला है, जलचर, स्थलचर या नभचर है, साकार जागृत श्रुतोपयोगसे युक्त है और उत्कृष्ट स्थितिके साथ उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला या ईषत् मध्यम परिणामवाला है ऐसे अन्यतर जीवके कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट ज्ञानावरणवेदना होती है। -वेदनाकालविधान दसणमोहस्सुवसामगो दु चदुसु गदीसु बोद्धव्वो। पंचिंदिओ य सण्णी णियमा सो होइ पजत्तो // 15 // दर्शनमोहनीयका उपशम करनेवाला जीव चारी ही गतियोंमें जानना चाहिए / वह नियमसे पञ्चेन्द्रिय, संज्ञी और पर्याप्तक होता है // 65 // सव्वणिरयभवणेसु दीवसमुद्दे गुहजोदिसिविमाणे। अभिजोग्गअणभिजोग्गे उवसामो होइ बोद्धव्वो // 16 // सब नरकोंमें, सब भवनवासी देवोंमें, सर्व द्वीप और समुद्रोंमें, सव व्यन्तर देवोंमें, सब ज्योतिषी देवोंमें, सौधर्मकल्पसे लेकर नौ ग्रैवयकतकके सब विमानवासी देवोंमें, वाहनादि देवोंमें, किल्विषिक देवोंमें तथा पारिषद शादि देवोंमें दर्शनमोहनीय कर्मका उपशम होता है // 6 // -वदना