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________________ ____ नोआगमभावमनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 307 स्त्रियाँ छठी पृथिवी तक जाती हैं' इस सूत्रके साथ विरोध आता है / उत्कृष्ट देवायुका बन्ध भी द्रव्यस्त्रीवेदवाले जीवके नहीं होता, क्योंकि ऐसा मानने पर उसका 'नियमसे निर्ग्रन्थ लिङ्गवालेके उत्कृष्ट देवायुका बन्ध होता है' इस सूत्रके साथ विरोध आता है। द्रव्य स्त्रियोंके निर्ग्रन्थपना बन जाय यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि बस्त्र आदिका त्याग किये बिना उनके भाव निर्ग्रन्थपना नहीं बन सकता। द्रव्यस्त्रियों और द्रव्यनपुंसकोंके वस्त्र आदि का त्यांग होता है यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इस कथनका छेदसूत्रके साथ विरोध आता है। . -वेदनाकालविधान सूत्र 12 धवला टीका सामण्णा पंचिंदी पजत्ता जोणिणी अपजत्ता / तिरिया णरा तहा वि य पंचिंदियभंगदो होणा // 14 // तिर्यञ्च पाँच प्रकार के हैं--सामान्यतिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, पर्याप्त, पञ्चेन्द्रिययोनिनीतियञ्च और पञ्चेन्द्रियअपर्याप्त तिर्यञ्च / पञ्चेन्द्रिय भेदके सिवा मनुष्य भी चार प्रकारके हैं—सामान्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और अपर्याप्त मनुष्य // 146 // -गोम्मटसार जीवकाण्ड मणुवे ओघो थावरतिरियादावदुगएयवियलिंदी / साहरणिदराउतियं वेउन्वियछक्कपरिहीणो // 26 // ___ सामान्य मनुष्योंमें ओघके समान भङ्ग है / परन्तु उनमें स्थावरद्विक, तिर्यञ्चगतिद्विक, आतपद्विक, एकेन्द्रियजाति, विकलत्रयजाति, सांधारण, नरकायु, मनुष्यायु, देवायु और वैक्रियिकषटक इन बीस प्रकृतियोंका उदय न होनेसे उदययोग्य 102 प्रकृतियाँ होती हैं। सामान्य मनुष्योंसे तीनों वेदोंके उदयवाले सब मनुष्य लिए गये हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है / / .298 // _ पजत्ते वि य इथिवेदापजत्तपरिहीणो // 30 //
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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