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________________ 306 . वर्ण, जाति और धर्म संजमकालुवलंभादो / "एवं संजदासंजदस्स वि उक्कसकालो वत्तव्यो। णवरि अंतोमुहत्तपुधत्तेण ऊणिया संजमासंजसस्स कालो त्ति वत्तव्वं / ___आशय यह है कि गर्भसे लेकर आठ वर्षके बाद कोई मनुष्य संयमको प्राप्त होकर और कुछ कम एक पूर्व कोटि काल तक संयमके साथ रहकर यदि मरकर देव हो जाता है तो संयमका उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि प्रमाण प्राप्त होता है। ... 'इसी प्रकार संयतासंयतका भी उत्कृष्ट काल कहना चाहिए / इतनी विशेषता है कि (सम्मूर्छन तिर्यञ्चकी अपेक्षा) संयमासंयमका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्व कम एक पूर्वकोटि प्रमाण कहना चाहिए। --क्षुल्लकबन्ध काल सूत्र 146 धवला टीका देव-णेरइयाणं उक्कस्साउअबंधस्स तीहि वेदेहि विरोहो गस्थिति जाणावणटुं इस्थिवेदस्स वा पुरिसवेदस्स वा गqसयवेदस्स वा त्ति भणिदं / एत्थ भाववेदस्स गहणं, अण्णहा दव्वित्थिवेदेण वि गेरइयाणमुक्कस्साउभस्स बंधषसंगादो। ण च तेण सह तस्स बंधो, 'आ पञ्चमी त्ति सोहा इत्थीओ जंति छठिपुढवि त्ति' एदेण सुत्तेण सह विरोहादो। ण च देवाणं उक्कस्साउअंदन्वित्थिवेदेण सह बज्झइ, 'णियमा णिग्गथलिंगेणे' त्ति सुत्तेण सह विरोहादो। ण च दव्वीणं णिगंत्थत्तमत्थि, चेलादिपरिच्चाएण विणा तासि भावणिग्गंथत्ताभावादो। ण च दग्विस्थि-गqसयवेदाणं चेलादिचागो अस्थि, छेदसुत्तेण सह विरोहादो। देवों और नारकियोंसम्बन्धी उत्कृष्ट अायुबन्धका तीनों वेदोंके साथ विरोध नहीं है / अर्थात् तीनों वेदवाले जीव देवायु और नरकायुकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कर सकते हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए सूत्रमें 'इत्थिवेदस्स वा पुरिसवेदस्स वा णqसयवेदस्स वा' यह कहा है। यहाँ इन तोनों वेदोंसे भाववेदका ग्रहण करना चाहिए, अन्यथा द्रव्य स्त्रीवेदवालेके भी उत्कृष्ट नरकायुके बन्धका प्रसङ्ग प्राप्त होता है, परन्तु द्रव्य स्त्रीवेदवालेके उत्कृष्ट नरकायुका बन्ध नहीं होता, क्योंकि 'सिंह पाँचवीं पृथिवी तक और
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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