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________________ वर्ण, जाति और धर्म मनुष्य पर्याप्तकोंमें उक्त 102 प्रकृतियोंमेंसे स्त्रीवेद और अपर्याप्त इन दो प्रकृतियोंको कम कर देनेपर उदययोग्य 100 प्रकृतियाँ होती हैं / मनुष्य पर्याप्तकोंसे पुरुषवेद और नपुंसकवेदके उदयवाले सब मनुष्य लिए गये हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है // 300 // मणुसिणि इत्थीसहिदा तिस्थयराहारपुरिससंदणा। पुष्णदरेव अपुण्णे सगाणुगदिभाउगंणेयं // 30 // .. मनुष्यिनियोंमें उक्त 100 प्रकृतियोंमेंसे तीर्थङ्कर, अहारकद्विक, पुरुषवेद और नपुंसकवेद इन पाँच प्रकृतियोंको कम करके स्त्रीवेदके मिलानेपर 66 प्रकृतियाँ उदययोग्य होती हैं। तथा मनुष्य अपर्याप्तकोंमें तिर्यश्च अपर्याप्तकोंके समान 71 प्रकृतियाँ उदययोग्य होती हैं। मात्र यहाँपर तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और तिर्यञ्चायुके स्थानमें मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वो और मनुष्यायु ये तीन प्रकृतियाँ लेनी चाहिए / मनुष्यिनियोंसे स्त्रीवेदके उदयवाले सब मनुष्य और मनुष्य अपर्याप्तकोसे नपुंसकवेद और अपर्याप्तप्रकृतिके उदयवाले सब मनुष्य लिए गये हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। -गोम्मटसार कर्मकाण्ड तिर्यञ्चः सामान्यतिर्यञ्चः पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चः पर्याप्ततिर्यञ्चः योनिमत्तिर्यञ्चः अपर्याप्ततिर्यञ्चश्चेति पञ्चविधा भवन्ति / तथा मनुष्या अपि / किन्तु पञ्चेन्द्रियभङ्गतः भेदात् हीना भवन्ति / सामान्यादिचतुर्विधा एव भवन्तीत्यर्थः। सर्वमनुष्याणां केवलं पञ्चेद्रियत्वेनैव सम्भवात् / तिर्यग्वत्तद्विशेषणस्य व्यवच्छेद्यत्वाभावात् / जो० प्र० टी०] सामान्यतिर्यञ्चः पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चः पर्याप्ततियञ्चः योनिमतीतिर्यञ्चः अपर्याप्ततियञ्च इति तिर्यञ्चो जीवाः पञ्चप्रकारा भवन्ति / तथा तिर्यग्जीवभेदप्रकारेण नरा मनुष्या अपि, पञ्चेन्द्रियभङ्गतः पञ्चेन्द्रियभेदात् हीनाः पञ्चेन्द्रियभेदरहिताः सामान्यापर्याप्तयोनिमत्पर्याप्तभेदाच्चतुर्विधा इत्यर्थः / सामान्यादीनां विशेषापर्याप्तयोनिमत्पर्याप्तरूपप्रतिपक्षवदत्पन्चे
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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