________________ वर्ण, जाति और धर्म है, क्योंकि यह प्रकरण प्रथमोपशमसम्यग्दृष्टिका है। इसको उत्पन्न करने वाले जीवका सूत्रोक्त अन्य विशेषताओंके साथ मिथ्यादृष्टि होना आवश्यक है / किन्तु अन्य किसी सम्यग्दर्शनको उत्पन्न करनेवाले जोवका मिथ्यादृष्टि होना आवश्यक नहीं है। इन विशेषताओंसे युक्त किस जीवके यह सम्यग्दर्शन होता है इस प्रश्नका उत्तर देते हुए इसी सत्रकी टीकामें कहा है कि वह देव, नारकी, तिर्यञ्च और मनुष्य इनमेंसे किसी भी जीवके हो सकता है / टीका वचन इस प्रकार है सो देवो वा गैरइओ वा तिरिक्खो वा मणुसो वा। इस प्रकार इस कथनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि सामान्यसे सम्यग्दर्शन चारों गतियोंमेंसे किसी भी गतिके. जीवके उत्पन्न हो सकता है। यह नहीं है कि नरककी अपेक्षा प्रथम नरकका नारकी ही सम्यग्दर्शन उत्पन्न कर सकता है और द्वितीयादि नरकोंका नारकी नहीं उत्पन्न कर सकता / तिर्यञ्चोंमें भी कोई बन्धन नहीं है। जो गधा अपनी सेवावृत्ति और सहनशीलताके कारण भारतीय समाजमें अछूत माना जाता है वह भी इसे उत्पन्न कर सकता है और जो सिंह दूसरेका वध करके अपनी उदरपूर्ति करता है वह भी इसे उत्पन्न कर सकता है। चूहा प्रतिदिन जिनमन्दिरमें वेदीके ऊपर चढ़कर अपने कारनामोंसे वेदी और जिनबिम्बको अपवित्र करता रहता है / तथा बिल्ली उसी मन्दिरमें प्रवेशकर चूहेका वध करनेसे नहीं चूकती। इस प्रकार जो निकृष्ट योनिमें उत्पन्न होकर भी ऐसे जघन्य कर्मों में लगे रहते हैं वे भी सम्यग्दर्शनको उत्पन्न कर सकते हैं। धर्मके माहात्म्यको दिखलाते हुए स्वामी समन्तभद्र रत्नकरण्डकमें कहते हैं स्वापि देवोऽपि देवः श्वा जायते धर्मकिल्विषात् / काऽपि नाम भवेदन्या सम्पद्धर्माच्छरीरिणाम् // 26 // अर्थात् धर्मके माहात्म्यसे कुत्ता भी मरकर देव हो जाता है और पापके कारण देव भी मरकर कुत्ता हो जाता है। धर्मके माहात्म्यसे जीव