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________________ - प्रकृतमें उपयोगी पौराणिक कथाएँ 261 कर्मोंका नाश कर वह मोक्ष गया।' आराधनाकथाकोशमें मृगध्वजको मैंसैका मांस खानेवाला बतलाया गया है। राजकुमारका गणिका पुत्रीके साथ विवाह चन्दन वनमें अमोघदर्शन नामका एक राजा था। उसकी पत्नीका नाम चारुमति और पुत्रका नाम चारुचन्द्र था। वहीं एक रङ्गसेना नामकी गणिका रहती थी। उसकी पुत्रीका नाम कामपताका था। एक बार वेश्यापुत्रीके साथ ये सब यज्ञदीक्षाके लिए गये / वहाँ पर कौशिक आदि जटाधारी तपस्वी भी आये हुए थे। राजाको आज्ञा पाकर कामपताकाने मनोहारी नृत्य किया। जिसे देखकर राजपुत्र और कौशिक तपस्वी उस पर मोहित हो गये। किन्तु अवसर देखकर राजपुत्र कामपताकाको ले भागा और उसके साथ विवाह कर लिया। म्लेच्छ रानीके पुत्रका मुनिधर्म स्वीकार एक बार अटवीमें पर्यटन करते हुए वसुदेवकी दृष्टि म्लेच्छ राजाकी कन्या जराके ऊपर पड़ गई / म्लेच्छराजने वसुदेवके इस भावको जान कर उनके साथ उसका विवाह कर दिया। वसुदेव रतिक्रीड़ा करते हुए कुछ दिन वहीं रहे / फलस्वरूप उन दोनोंको पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई। पुत्रका नाम जरत्कुमार रखा गया / जीवनके अन्तमें जरत्कुमारने मुनिधर्म स्वीकार कर सद्गति पाई। चाण्डालको धर्मके फलस्वरूप देवत्वपदकी प्राप्ति___ अयोध्यानिवासी समुद्रदत्तसेनके पूर्णभद्र और मणिभद्र नामके दोनों पुत्र एक बार महेन्द्रसेन गुरुके पास गये। अवसर देख कर उन्होंने गुरुसे पूछा महाराज ! इस चाण्डाल और कुत्तीको देख कर हमें विशेष 1. हरिवंशपुरोण सग 28 श्लो० 17-28 / 2. हरिवंशपुराण सर्ग 26 श्लो० 24-30 / 3. हरिवंशपुराण सर्ग 31 श्लो० 6-7 /
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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