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________________ 212 वर्ण, जाति और धर्म स्नेह क्यों होता है ? श्राचार्य महाराजने उत्तर दिया कि ये दोनों श्राप दोनोंके इसी भवके माता-पिता हैं। इन दोनोंमें स्नेह होनेका एकमात्र यही कारण है। यह सुन कर उन दोनोंने चाण्डाल और कुत्तीको धर्मका उपदेश दिया। उपदेश सुन कर चाण्डाल दीनताको त्याग कर परम निवेदको प्राप्त हुआ। उसने चार प्रकारके आहारका त्याग कर समाधिपूर्वक प्राण छोड़े और नन्दीश्वर द्वीपमें जाकर देव हुआ। तथा कुत्तो भी सम परिणामोंसे मर कर राजपुत्री हुई। परस्त्रीसेवो मधुराजाका उसके साथ सकलसंयमग्रहण अयोध्या नगरीके राजाका नाम हेमनाभ था। उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र मधुको राज्य देकर जिनदीक्षा ले ली। कुछ समय बाद राजा मधु किसी कारणवश वटपुर गये। वटपुरके राजाका नाम वीरसेन और उसकी रानीका नाम चन्द्राभा था। चन्द्रामा रूप-यौवनसम्पन्न थी। अभ्यर्थना करते समय राजा मधुकी उस पर दृष्टि पड़ गई। उस समय तो वह कुछ नहीं वोला। किन्तु नगरमें वापिस लौट कर उसने उत्सवके बहाने उसे अपने नगरमें बुला लिया और उत्सवके अन्तमें छलसे रानीको अपने महलमें बुला कर पट्टरानी बना लिया। अब वे दोनों पति-पत्नीके रूपमें सुखपूर्वक भोग भोगने लगे / कुछ काल बाद एक ऐसी घटना घटी जिससे उन दोनोंको वैराग्य हो गया / फलस्वरूप राजा मधुने मुनिधर्मकी और चन्द्राभाने आर्यिकाकी दीक्षा ले ली। अन्तमें धर्मके प्रभावसे मर कर वे दोनों स्वर्गमें देव हुए। शूद्र गोपाल द्वारा मनोहारी जिनपूजा तेर नगरीमें धनमित्र नामका एक सेठ रहता था। उसकी भार्याका नाम धनमित्रा था। उन्होंने गाय-भैसोंके चराने के लिए धनदत्त नामके . 1. हरिवंशपुराण सर्ग 43 श्लो० 148-156 / 2. हरिवंशपुराण सर्ग 43 श्लो० 156-215 / 3. बृहत्कथाकोशकथा 56 पृ० 86 /
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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