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________________ 261 जिनमन्दिर प्रवेश मीमांसा सकता / स्पष्ट है कि जिस प्रकार ब्राह्मण आदि उच्च वर्णवाले मनुष्योंको जिनमन्दिर में जाकर पञ्चपरमेष्ठीको आराधना करनेका अधिकार है उसी प्रकार शूद्रवर्णके मनुष्योंको भी किसी भी धर्मायतनमें जाकर सामायिक प्रमुख भगवद्भक्ति, स्तवन, पूजन और स्वाध्याय आदि करनेका अधिकार है / यही कारण है कि बहुत प्रयत्न करने के बाद भी हमें किसी भी शास्त्रमें 'शूद्र जिनमादिर में जानेके अधिकारी नहीं है। इसका समर्थन करनेवाला वचन उपलब्ध नहीं हो सका। हरिवंशपुराणका उल्लेख___यह जैनधर्मका हार्द है / अब हम हरिवंशपुराणका एक ऐसा उल्लेख उपस्थित करते हैं जिससे इसकी पुष्टि होनेमें पूरी सहायता मिलती है / बलभद्र विविध देशोंमें परिभ्रमण करते हुए, विद्याधर लोकमें जाते हैं और वहाँ पर बलि विद्याधरके वंशमें उत्पन्न हुए विद्युद्वेगकी पुत्री मदनवेगाके साथ विवाह कर सुखपूर्वक जीवन-यापन करने लगते हैं। इसी बीच सत्र विद्याधरोंका विचार सिद्धकूट जिनालयकी वन्दनाका होता है। यह देखकर बलदेव भी मदनवेगाको लेकर सबके साथ उसकी वन्दनाके लिए जाते हैं। जब सब विद्याधर जिनपूजा और प्रतिमागृहकी वन्दना कर अपने-अपने स्थान पर बैठ जाते हैं तब बलदेवके अनुरोध करने पर मदनवेगा सब विद्याधर निकायोंका परिचय कराती है। बह कहती है-'जहाँ हम और आप बैठे हैं इस स्तम्भके आश्रयसे बैठे हुए तथा हाथमें कमल लिए हुए और कमलोंकी माला पहिने हुए ये गौरक नामके विद्याधर हैं / लाल मालाको धारण किये हुए और लाल वस्त्र पहिने हुए ये गान्धार विद्याधर गान्धार नामक स्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं। नाना प्रकारके रंगवाले सोनेके रंगके और पीत रंगके रेशमी वस्त्र पहिने हुए ये मानवपुत्रक निकायके विद्याधर मानव नामक स्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं। कुछ आरक्त रंगके वस्त्र पहिने हुए और मणियोंके आभूषणोंसे सुसजित ये मनुपुत्रक निकायके विद्याधर मान नामक स्तम्भके आश्रयसे बैठे हैं। नाना
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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