________________ व्यक्तिधर्म देवी देवताओं की मान्यता, मकरसंक्रान्ति, चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहणके * समय नदी स्नान तथा पितरोंका तर्पण आदि अनेक लोकरूढ़ियाँ प्रचलित हैं। जैनधर्ममें किसी किसी क्षेत्रमें क्षेत्रपाल, धरणेन्द्र और पद्मावतीको पूजा की जाती है। और भी ऐसी अनेक लोकरूढ़ियाँ हैं जिन्होंने धर्मका रूप ले लिया है। किन्तु ये लोकरूढ़ियाँ समीचीन धर्म संज्ञाको नहीं प्राप्त हो सकतीं, क्योंकि न तो इनसे किसी भी जीवधारीका अन्मल धुलता है और न ही ये उत्तम सुखके प्राप्त कराने में हेतु हैं / तभी तो इनको जैनधर्ममें लोकमूढ़ता शब्द द्वारा सम्बोधित किया गया है / इनको लक्ष्यकर स्वामी समन्तभद्र रत्नकरण्डमें कहते हैं आपगासागरस्नानमुञ्चयः सिकताश्मनाम् / गिरिपातोऽग्निपातश्च लोकमूढं निगद्यते // 22 // ___ अर्थात् नदीमें स्नान करना, समुद्रमें स्नान करना, बालू और पत्थरों का ढेर करना, पहाड़से गिरकर प्राणोत्सर्ग करना और अग्निमें कूदकर प्राण दे देना ये सब लोकमूढ़ताएं हैं। इन्हें या इसी प्रकारकी प्रचलित अन्य क्रियाओंकों धर्म माननेवाला अज्ञानी है। - यहाँ हमारा किसी एक धर्मकी निन्दा करना और दूसरे धर्मकी प्रशंसा करना प्रयोजन नहीं है। इस प्रकरणको इस दृष्टिकोणसे देखना भी नहीं चाहिए / धर्मकी मीमांसा करते हुए वह क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता, इतना बतलाना मात्र इसका प्रयोजन है। अज्ञान मनुष्यकी दासता है और सम्यग्ज्ञान उसकी स्वतन्त्रता इस तत्थ्यको हृदयङ्गम करनेके बाद ही यहाँ पर धर्मके सम्बन्धमें जो कुछ कहा जा रहा है उसकी महत्ता समझमें आ सकती है। लोकमें अज्ञानमूलक अनेक मान्यताएँ और क्रियाकाण्ड धर्मके नाम पर प्रचलित हैं, परन्तु वे सब मनुष्यकी 'दासता की ही निसानी हैं। वास्तवमें उन्हें धर्म मानना धर्मका उपहास करनेके समान है। धर्म यदि लोकोत्तर पदार्थ है और प्रत्येक प्राणीका