________________ वर्ण, जाति और धर्म देशयामि समीचीनं धर्म कर्मनिवर्हणम् / संसारदुःखतः सत्त्वान् योधरत्युत्तमे सुखे // 2 // साधारणतः लोकमें धर्मके नाम पर अनेक प्रकारके व्यवहार प्रचलित हैं और वे धर्म माने जाते हैं। हमारे मकानके सामने एक नीमका वृक्ष है और वहीं देवीका मन्दिर है। प्रातःकाल कुछ मनुष्य देवीका दर्शन करने और जल चढ़ानेके लिए आते हैं। लौटते समय उनमेंसे कुछ आदमी नीमके ऊपर भी जल छोड़ते जाते हैं। एक दिन किसी भाईसे ऐसा करने का कारण पूछने पर उसने बताया कि हमारे धर्मशास्त्रमें वृक्ष की पूजा करना धर्म बतलाया गया है, इसलिए हम ऐसा करते हैं / एक दूसरी प्रथा हमें अपने प्रदेशकी याद आती है। कहा जाता है कि न्यूनाधिकरूपमें यह प्रथा भारतवर्षके अन्य भागोंमें भी प्रचलित है / हमारी जातिमें यह प्रथा विशेष रूपसे प्रचलित है। इसे सपटोनी कहते हैं / विवाहके समय वरके घरसे विदा होकर कन्याके गाँव जाते समय यह विधि की जाती है। सर्व प्रथम वरके मकानके मुख्य दरवाजेके आगे बाहर चौक पूर कर उसमें वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित कर और दरवाजेकी ओर मुख कराकर वरको खड़ा किया जाता है / बादमें चार मनुष्य एक लाल वस्त्र लेकर उसके ऊपर चंदोवा तानते हैं / और वरकी माता देहलींके भीतरसे दूसरी ओर खड़े हुए एक मनुष्यको मूसल और मथानीको सातबार चंदोवाके नीचेसे वरके दाहिनी ओरसे देकर चंदोवाके ऊपरसे वांई ओरसे लेती जाती है / यह जातिधर्म है। हमारी जातिमें विवाहके समय इसका किया जाना अत्यन्त आवश्यक माना जाता है / इसके करनेमें रहस्य क्या है इसपर मैंने बहुत विचार किया / अन्तमें मेरा ध्यान 'सपटोनी' शब्द पर जानेसे इसका रहस्य खुल सका / 'सपटोनी' सात टोना शब्दसे बिगड़कर बना है / मालूम पड़ता है कि जब टोना-टोटकाको बहुलता थी तब यह प्रथा किसी कारणवश हमारी जातिमें प्रविष्ट हो गई और आज तक चली. आ रही है। वैदिकधर्ममें गङ्गास्नान, पीपल और बरगद आदि वृक्षोंकी पूजा,