________________ 247 भाहारग्रहण मीमांसा अयोग्य घोषित करते। तीसरे जैनधर्ममें जन्मसे जातिव्यवस्था मान्य नहीं है, इसलिए भी यहाँ पर अभोज्यगृहका अर्थ 'चण्डाल श्रादिका घर' करना उपयुक्त प्रतीत नहीं होता। चौथे यदि मूलाचारकारको चण्डाल आदि जाति विशेषको आहार देनेके अयोग्य घोषित करना इष्ट होता तो वे 'अभोज्य गृहप्रवेश' ऐसे सामान्य शब्दको न रखकर आहार देनेके अयोग्य जातियोंका स्पष्ट नामोल्लेख करते / यहाँ पर हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं. कि मूलाचार मूलमें वह शब्द 'वेसी' है जिसका अर्थ यहाँ पर वेश्या या दासी किया गया है। प्राकृतमें इस शब्दके सन्निकटवर्ती वेसिणी, वेसिया और वेस्सा ये तीन शब्द हमारे देखने में आये हैं जिनका अर्थ वेश्या होता है। इस अर्थमें वेसी शब्द हमारे देखने में नहीं आया। मूलमें यह शब्द समणी शब्दके पास पठित है, इसलिए सम्भव है कि यह शब्द किसी भी प्रकारके साधु लिङ्गको धारण करनेवाले व्यक्तिके अर्थमें आया हो। या वेसी शब्दका अर्थ द्वेषी या अन्य लिङ्गधारी भी होता है, इसलिए यह भी सम्भव है कि जो प्रत्यक्षमें श्रमणोंकी नवधा भक्ति न कर रहा हो या जो अन्य लिङ्गी साधु हो उस अर्थमें यह शब्द आया हो / मूलाचारकी टीकामें इसका पर्यायवाची वेश्या दिया है। उसके अनुसार इसका अर्थ यदि वेश्या ही किया जाता है तब भी कर्मकी ही प्रधानता सिद्ध होती है। इस प्रकार सब दृष्टिसे विचार करने पर यही प्रतीत होता है कि प्रकृतमें 'अभोज्यगृहप्रवेश' शब्दका अर्थ जिस घरमें मांस पक रहा है या मदिरा उतारी जा रही है या इसी प्रकारका अन्य कार्य किया जा रहा है ऐसे .घरमें प्रवेश करने पर साधु उस दिन आहारका त्याग कर देता था। ____ मूलाचारमें अन्तरायोंका उपसंहार करते हुए. एक गाथा और आती है जिसमें कहा गया है कि 'भोजनके परित्याग करनेके ये तथा बहुतसे अन्य कारण हैं / ये होने पर तथा भय और लोकजुगुप्सा होने पर साधुको संयम और निर्वेदकी रक्षाके लिए आहारका त्याग कर देना चाहिए।' इससे ऐसा भी मालूम पड़ता है कि साधुके आहार के लिए चारिका करते समय