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________________ 246 वर्ण, जाति और धर्म दिन आहारका त्याग कर देता है यह इस पदका सामान्य अर्थ है। विशेष रूपसे विचार करने पर इसके तीन अर्थ हो सकते हैं-प्रथम मिश्यादृष्टिका घर, दूसरा चाण्डाल आदि शूद्रोंका घर और तीसरा जिस घरमें मांस आदि पकाया जाता है ऐसा घर / प्रकृतमें इनमेंसे साधुपरम्परामें कौन अर्थ इष्ट रहा है इसका विचार करना है / - आगममें बतलाया है कि जो मिथ्यादृष्टि मुनियोंको आहार देते समय श्रायुबन्ध करते हैं उन्हें उत्तम भोगभूमिसम्बन्धी आयुका बन्ध होता है, जो मिथ्यादृष्टि विरताविरत श्रावकोंको अाहार देते समय आयुबन्ध करते हैं उन्हें मध्यम भोगभूमिसम्बन्धी अायुका बन्ध होता है और जो मिथ्यादृष्टि अविरतसम्यग्दृष्टियोंको आहार देते समय आयुबन्ध करते हैं उन्हें जघन्य भोगभूमिसम्बन्धी आयुका बन्ध होता है। इससे मालूम पड़ता है कि प्रकृतमें 'अभोज्यगृह' शब्दका अर्थ 'मिथ्यादृष्टि घर' तो हो नहीं सकता। तथा मूलाचारमें बलिदोषका विवेचन करते हुए जो कुछ कहा गया है उससे भी ऐसा ही प्रतीत होता है और यह असम्भव भी नहीं है, क्योंकि जब आम जनता विविध सम्प्रदायोंमें विभक्त नहीं हुई थी और राजा गण सब धर्मों के प्रति समान आदर व्यक्त करते रहते थे तब साधुओंको यह विवेक करना असम्भव हो जाता था कि कौन गृहस्थ किस धर्मको माननेवाला है। इसलिए वे जो भी गृहस्थ आगमविहित विधिसे आहार देता था उसे स्वीकार कर लेते थे। इसलिए प्रकृतमें 'अभोज्यगृह' शब्दका अर्थ 'मिथ्यादृष्टिका घर' तो लिया नहीं जा सकता। . प्रकृतमें इस शब्दका अर्थ 'चण्डाल आदिका घर' करना भी ठीक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि एक तो इससे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यके जिन घरोंमें मांसादि पकाया जाता है उन घरोंका वारण नहीं होता। दूसरे यदि प्रकृतमें इस शब्दसे चण्डाल श्रादिका घर इष्ट होता तो जिस प्रकार दायक दोषका उल्लेख करते समय उन्होंने वेश्या और श्रमणीको दान देनेके अयोग्य घोषित किया है उसी प्रकार वे चण्डाल आदिको भी उसके
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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