SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ण, जाति और धर्म है / गृहस्थ भी इन सब कार्योंमें खूब रस लेते हैं। यदि इन सब कार्योंको प्रोत्साहन देनेके लिए किसी साधु या त्यागीको साधन सम्पन्न गृहस्थ मिल जाते हैं तो कहना ही क्या है। इसे समयकी बलिहारी ही कहनी चाहिए / यहाँ पर इन सब बातोंके निर्देश करनेका हमारा अभिप्राय इतना ही है कि जहाँ हम बाह्य शुद्धिके नामपर धर्ममें विपरीतता लाये हैं वहाँ हमने और भी अनेक प्रकारकी विपरीतताओंको प्रश्रय देकर धर्मकी दिशा ही बदल दी है। ___ माना कि गृहस्थ स्नान करता है, मुख प्रक्षालन करता है, स्वच्छवस्त्र रखता है तथा सफाईके और भी अनेक कार्य करता है। किन्तु इतने मात्रसे उसके ये सब कार्य धर्म नहीं माने जा सकते / लौकिक शुद्धिका अर्थ ही बाह्य शुद्धि है जो प्रारम्भके विना सम्भव नहीं है। इनके सिवा गृहस्थ आवश्यकतावश और भी अनेक प्रकारके आरम्भ करता है। वह ' व्यापार करता है, खेती-बाड़ी करता है, राज्य या सभा सोसाइटीका सञ्चालन करता है, विवाह करता है, सन्तानोत्पत्तिके लिए प्रयत्न करता है, अपनी सन्तानकी शिक्षा आदिका प्रबन्ध करता है, धन सञ्चयकर उसका संरक्षण करता है और नहीं मालूम कितने कार्य करता है तो क्या उसके इन सब कार्योंकी धर्म कार्योंमें परिगणना की जा सकती है ? यदि कहा जाय कि ये सब प्रारम्भ हैं / इनके करनेमें एक तो जीववध होता है और दूसरे ये मोक्षमार्गमें प्रयोजक न होकर संसारके ही बढ़ानेवाले हैं, इसलिए इन्हें करनेसे धर्मकी प्राप्ति होती है ऐसा नहीं कहा जा सकता। यदि यह बात है तो विचार कीजिए कि स्नान आदिको धर्म कैसे माना जा सकता है / अर्थात् नहीं माना जा सकता। स्पष्ट है कि जिसे हम बाह्य शुद्धि कहते है उसका धर्म अर्थात् मोक्षमार्गके साथ रञ्चमात्र भी सम्वन्ध नहीं है / वास्तवमें जैनधर्मका मुख ही स्नान आदि आरम्भके त्यागकी ओर है। इसलिए स्नान आदिको धर्मसंज्ञा नहीं दी जा सकती है। यही कारण है कि गृहस्थधर्ममें भी जहाँ पर्व दिनोंमें उपवास आदिका विधान किया गया है
SR No.004410
Book TitleVarn Jati aur Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1989
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy