________________ 314 सत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् [ अध्यायः अथ व्यन्तराणां परा स्थितिः कीदृशीत्याह सूत्रम्-परा पल्योपमम् // 4-47 // भा०-व्यन्तराणां परा स्थितिः पल्योपमं भवति // 47 // टी-व्यन्तरदेवानां पल्योपममुत्कृष्टा, व्यन्तरीणामुत्कर्षेण पल्योपमामिति // 47 // अथ ज्योतिष्काणामुत्कृष्टस्थित्यभिधित्सया प्राह सूत्रम्-ज्योतिष्काणामधिकम् // 4-48 // भा०--ज्योतिष्काणां देवानामधिकं पल्योपमं स्थितिर्भवति // 48 // टी-पल्योपममित्यनुवर्तते, तदधिकं ज्योतिष्कदेवानामुत्कृष्टा स्थितिः सूर्यदेवस्य वर्षसहस्राधिकं पल्योपमम्, चन्द्रमसो वर्षलक्षाधिकं तदेव, ज्योतिष्कदेवीनामुत्कर्षेण पल्योपमा पश्चाशद्भिर्वर्षसहस्रैरभ्यधिकमिति // 48 // सूत्रम-ग्रहाणामेकम् // 4-49 // भा०-ग्रहाणामेकं पल्योपमं परा स्थितिर्भवति // 49 // टी०-पल्योपममभिसम्बन्ध्यते, अङ्गारकादीनामिति // 49 // सूत्रम्-नक्षत्राणामधेम् // 4-50 // भा०-नक्षत्राणां देवानामर्धपल्योपमं परा स्थितिर्भवति // 50 // टी०-अश्विन्यादीनां पल्योपमा स्थितिः परेति // 50 // सूत्रम्-तारकाणां चतुर्भागः॥ 4-51 // भा०-तारकाणां च पल्योपमचतुर्भागः परा स्थितिर्भवति // 51 // टी०--परा स्थितिः पल्योपमचतुभागस्तारकाणामिति // 51 // सूत्रम-जघन्या त्वष्टभागः॥४-५२॥ भा०-तारकाणां तु जघन्या स्थितिः, पल्योपमाष्टभागः॥५२॥ टी०-तारकाणां पल्योपमाष्टभागो जघन्येति // 52 // सूत्रम्--चतुर्भागः शेषाणाम् // 4-53 // भा०-तारकाभ्यः शेषाणां ज्योतिष्काणां चतुर्भागः पल्योपमस्यापरा स्थितिरिति // 53 // टी–तारकव्यतिरिक्तज्योतिष्काणां ग्रहनक्षत्राणां जघन्या स्थितिः पल्योपमचतुभीगो वेदितव्येति // 53 // // इति श्रीतत्त्वार्थसङ्ग्रहे अर्हत्प्रवचने भाष्यानुसारिण्यां टीकायां देवगतिप्रदर्शनो नाम चतुर्थोऽध्यायः // // इति चतुर्थोऽध्यायः //