________________ 310 तत्त्वार्थाधिगममूत्रम् [ अध्यायः 1 टी०-दक्षिणार्धाधिपतीनां व्यतिरिक्ता उत्तरार्धाधिपतयः शेषा बलिव्यतिरिक्ताः तेषां पादोने द्वे पल्योपमे स्थितिरायुषः, पादश्चतुर्थभाग इति // 31 // अथ किमेषां भवनवास्यधिपतीनां सर्वेषामियं परा स्थितिः ? नेत्युच्यते, किन्त्वाधिपत्यसामान्ये विशेषेणानयोः प्रतिपत्तव्या // 31 // सूत्रम्-असुरेन्द्रयोः सागरोपममधिकं च // 4--32 // ____ भा०---असुरेन्द्रयोस्तु दक्षिणार्धाधिपत्युत्तरार्धाधिपत्योः सागरोपममधिकं च यथासङ्ख्यं परा स्थितिर्भवति // 32 // __टी०-पूर्वा (दक्षिणा ?)र्धाधिपतेश्चमरस्योत्तरार्धाधिपतेश्च बलिराजस्य यथासङ्ख्यमेव, सागरोपमं चमरस्य बलेस्तदेवाधिकं कियतापि विशेषेण सागरोपमस्थितिरायुषो भवतीति, / उक्तं च सागरोपमं लक्षणतः प्रागिति, असुरकुमारीणां चत्वारि पल्योपमानि सार्धानि परा स्थितिः, शेषाणां नागवधूप्रभृतीनां सर्वभवनवासिनीनां देशोनं पल्योपममुत्कृष्टा स्थितिरिति // 32 // ___ आद्यदेवनिकायस्थितिव्याख्यानानन्तरं व्यन्तरज्योतिष्कानवसरप्राप्तानतिलद्ध्योपरिष्टादेव तावल्लाधवार्थिना वैमानिकनिकायस्थितिराख्यायते-- वैमानिकस्थि- सूत्रम्-सौधमोदिषु यथाक्रमम् // 4--33 // तिप्रस्तावः भा०--सौधर्ममादिं कृत्वा यथाक्रममित ऊर्ध्व परा स्थितिर्वक्ष्यते // 33 // ___टी-सौधर्ममादिं कृत्वा यावत् सर्वार्थसिद्धविमानं तावद् यथाक्रममिति ऊर्च स्थितिर्वक्ष्यते देवानामायुष इति // 33 // सूत्रम्-सागरोपमे // 4-34 // भा०---सौधर्मे कल्पे देवानां परा स्थिति सागरोपमे इति // 34 // टी. ---इन्द्रमामानिकानां सागरोपमद्वयं सौधर्मे स्थितिरुत्कृष्टा लभ्यत इति // 34 // सूत्रम्-अधिक च // 4--35 // भा०--ऐशाने द्वे सागरोपमे अधिक परा स्थितिर्भवति // 35 // टी०--- अधिके च यथाक्रमग्रहणादेशानोऽभिसम्बध्यते / द्वे सागरोपमे कियताऽपि विशेषेणाधिके ऐशाने कल्पे परा स्थितिरिन्द्रादीनामिति // 35 // सूत्रम्-सप्त सनत्कुमारे // 4--36 // भा० सनत्कुमारे कल्पे सप्त सागरोपमाणि परा स्थितिर्भवति // 36 // 1.' इत्यधिको ग-पाठः।