________________ शतकसंज्ञकः पञ्चमः कर्मग्रन्थः 'अगुरुलहुग उवधायं परघा उज्जोयआयव निमेणं / पत्तेयथिरसुभेयरनामाणि य पोग्गलविवागा // 84 // 6 // आऊणि भवविवागा खित्तविवागा "य आणुपुव्वीओ। अवसेसा पयडीओ जीवविवागा मुणेयव्वा // 85 / / 12 / / एगपएसोगाढं सव्वपएसेहि कम्मणो जोगं / बंधइ जहुत्तहेउं साईयमणाइयं वा वि // 86 // 63 // पंचरसपंचवन्नेहि संजुयं दुविहगंधचउफासं / दवियमणंतपएसं सिद्धेहि अणंतगुणहीणं // 8764 // आउगभागो थोवो णामे गोए समो तओ अहिओ / आवरणमंतराए "तुल्लो अहिगो य मोहे वि // 88||5|| सव्वुवरि 'वेयणीए भागो अहिगो 'अ कारणं किंतु / सुहदुक्खकारणत्ता ठिईविसेसेण .सेसाणं // 89 // 66 // .. छण्हंपि अणुक्कोसो पएसबंधो चउव्विहो बंधो / / सेसतिगे दुविगप्पो मोहाउ य सबहिं चेव / / 60 // 17 // तीसण्हमणुक्कोसो उत्तर पयडीसु चउविहो बंधो / सेसतिगे दुविगप्पो''सेसासु य चउविगप्पो वि // 61 // 8 // आउक्कस्स पएसस्स पंच मोहस्स सत्त ठाणाणि / सेसाणि तणुकसाओ बंधइ उक्कोसगे जोगे ||12||66 / / सुहुमनिगोयाऽपजत्तगस्स पढमे जहन्नगे जोगे / . सत्तण्हं तु जहन्नं आउगबंधे वि आउस्स / / 93 / 100 // सत्तर सुहुमसरागो पंचगमनियट्टि सम्मगो नवगं / अजई वितियकसाए देसजई तइयए जयइ // 14 // 101 / / तेरस बहुप्पएसं सम्मो मिच्छो व कुणइ पयडीओ / आहारमप्पमत्तो सेसपएसुक्कडं मिच्छो // 65 // 102 / / . 1 "अगुरुलहू"। 2 "निम्मेणं" इत्यपि / 3 “पुग्गल०" इत्यपि / 4 "उ" इत्यपि / 5 "कम्मुणो” इत्यपि / 6 "परिणयं" इत्यपि पाठः / 7 "सरिसो' इत्यपि पाठः / 8 "वेयणीय" इत्यपि / 9 "" इत्यपि / 10 " पयडीण" इत्यपि / 11 'सेसाणं' इत्यपि / 12 "पि जहण्णो" इत्यपि / “सतरस" इत्यपि। . 14 'बीअकसाए" इत्यपि /