________________ [ 41 . शतकसंज्ञकः पञ्चमः कर्मग्रन्थः / सन्नी उक्कडजोगी पज्जतो पयडिबंधमप्पयरो / कुणइ पएसुक्कोसं जहन्नगं जाण विवरीए // 66 // 103 / / घोलणजोगिअसन्नी बंधइ चउ 'दोन्नि अप्पमत्तो उ / पंचासंजयसम्मो भवाइ सुहुमो भवे सेसा // 97 // 104 // जोगा पयडिपएसं ठिइअणुभागं कसायओ कुणइ / कालभवखित्तपेक्खो उदओ सविवागअविवागो // 18 // 10 // सेढिअसंखेज्जइमे जोगट्ठाणाणि होति सव्वाणि / तेसिमसंखिज्जगुणो पयडीणं संगहो सव्वो // 66 // 106 / / तासिमसंखिज्जगुणा ठिईविसेसा हवंति नायव्वा / "ठिइबंधज्झवसायाणिऽसंखगुणियाणि एत्तो उ॥१००।१०७।। तेसिमसंखिज्जगुणा अणुभागे होति बंधठाणाणि / एत्तो अणंतगुणिया कम्मपएसा मुणेयव्वा // 101 / / 108 // अविभाग पल्लिछेया अणंतगुणिया 'भवंति एचा उ / सुयपवरदिट्टिवाए विसिह मतओ परिकर्हिति // 102 // 106 / / एसो. बंधसमासो बिंदुक्खेवेण वन्निओ कोइ / कम्मप्पवायसुय सागरस्स णिस्संदमेचाओ // 10 // 110 // बंधविहाणसमासो रइओ अप्पसुयमंदमइणा उ / तं बंधमोक्खणिउणा पूरेऊणं परिकहेंति / / 104 / 111 / / इय कम्मयडिपनवं संखेवुद्दिढि णिच्छियमहत्थं / जो उवजुज्जइ बहुसो सो णाहिति बंधमोक्खट्ठ॥१०॥११२।। 1 "दुन्नि' इत्यपि / 2 "पंच असं०" इत्यपि।३ "तेसि असं०" इत्यपि / 4 "रिइबन्धझवसायट्ठाणाणि असंखगुणिआणि // " इत्यपि / 5 "पलिच्छेआ" इत्यपि / 6 “हवन्ति इत्तो उ" इत्यपि / 7 ""मयओ परिकहन्ति' इत्यपि / 8 "पिण्डखेवेण वणिओ" इत्यपि / 9 ""सायरस निम्संदमित्तो उ” इत्यपि / 10 "परिकहन्तु" इत्यपि / ११“संखेवुद्दिट्टनिच्छयमहत्थं" इत्यपि। 12 “उ पउंजइ बहुसो सो नाहिइ बन्धमोक्वत्थं" / / इत्यपि /